पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्रद्धा रखना भी ठीक नहीं है। केन्द्रीय खिलाफत समितिकी तरह कांग्रेस कोई आदेश नहीं जारी कर रही है और इसीलिए मैंने प्रस्तावमें "सलाह देती है" शब्दोंका प्रयोग किया है। अगर दो महीने बाद कांग्रेसको ऐसा लगेगा कि वह अभी जो विचार व्यक्त कर रही है वह विचार देशका विचार नहीं है तो वह उसमें परिवर्तन कर देगी। इसलिए इस मामलेमें अन्तरात्माको घसीटने या उसकी दुहाई देनेका कोई कारण नहीं है।

कौंसिलोंके बहिष्कारके सम्बन्धमें श्री गांधीने अपना विचार दुहराते हुए कहा कि कौंसिलें एक जालके समान हैं, जिसमें आपको कभी नहीं फँसना चाहिए। वे मृत्यु-पाश हैं। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि श्री पालका प्रस्ताव श्री दासके प्रस्तावसे काफी अच्छा है, लेकिन चुनावोंके बहिष्कारके सम्बन्धमें मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट हैं। मैं तो हर मतदाताके पास जाकर यह कहना चाहता हूँ कि पंजाब और खिलाफतके सवालोंपर सरकारने देशका जो अपमान किया है, उसका स्मरण करके आप लोग चुनावोंका बहिष्कार करें। मैं स्वराज्यके प्रस्तावके आधारपर उनसे कोई अनुरोध नहीं करूँगा। मेरे लिए तो स्वराज्य लक्ष्यतक पहुँचनेका एक साधन-मात्र है, और मैं तो स्वराज्य के बदले कोई भी ऐसी शासन-प्रणाली स्वीकार करनेको तैयार हूँ जिसे मैं देशके लिए हितकर समझूँ।

जहाँतक मूल सिद्धान्तका सवाल है, मेरे विचार स्पष्ट हैं। इस सम्बन्धमें मुझे हर बातमें श्री शौकत अलीका समर्थन करना चाहिए, और मुझे खुद भी ऐसा लगता है कि हमें आज जिस परिस्थितिमें पहुँचा दिया गया है, उस परिस्थितिमें मैं सरकारके प्रति कोई वफादारी नहीं दिखा सकता। चाहे ब्रिटेनके साथ सम्बन्ध रखकर या जरूरत हो तो उसके बिना भी मैं अपना लक्ष्य प्राप्त करनेके लिए प्रयत्न करनेको तैयार हूँ। ध्यान सिर्फ इतना ही रखना है कि तरीके शान्तिपूर्ण हों और उद्देश्य देशका कल्याण हो। कमसे-कम मानसिक रूपसे तो ब्रिटिश सम्बन्धोंके प्रति मुझे कोई मोह नहीं रह गया है। अन्तमें श्री गांधीने श्रोताओंसे अनुरोध किया कि आप, चाहे इस ओर या उस ओर, अपना मत स्थिर कीजिए। मैं आपसे एक बार फिर कहता हूँ कि आपको बेताब होकर, आपके लिए फैलाये गये इस मृत्यु-पाशमें नहीं फँस जाना चाहिए—— आपको शैतानी शक्तियोंका शिकार होनेसे बचना चाहिए। मैं पाश्चात्य संसारके आधुनिक और नये आदर्शोंमें विश्वास नहीं रखता। मेरा विश्वास तो प्राच्य संसारके प्राचीन और शान्तिपूर्ण आदर्शोंमें है। कारण, मैं यह भली-भाँति जानता हूँ कि भारतकी पसन्द, भारतका श्रेय क्या है, और मैं आपसे दुनियाको अपने प्राचीन आदर्शोपर आधारित एक नया सन्देश देनेका अनुरोध करता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ८-९-१९२०