१३८. असहयोग——एक धार्मिक आन्दोलन
मैं 'यंग इंडिया' के पाठकोंका ध्यान कुमारी एन मेरी पीटर्सनसे प्राप्त विचारपूर्ण पत्रकी[१]ओर दिलाता हूँ। कुमारी पीटर्सन कुछ वर्षोंसे भारतमें ही रह रही हैं और वे भारतीय मामलोंका ध्यानपूर्वक अध्ययन करती रही हैं। वे अपने को सच्ची राष्ट्रीय शिक्षाके कार्योंमें लगानेके उद्देश्यसे अपने मिशनसे अलग होने जा रही हैं।
मैंने पूरा पत्र नहीं दिया है——सभी व्यक्तिगत बातें निकाल दी हैं। लेकिन उनकी दलील बिलकुल अछूती छोड़ दी गई है। यह पत्र छपानेके इरादे से नहीं लिखा गया था। इसे मेरे वेल्लोरमें दिये गये भाषणके तुरन्त बाद लिखा गया था। लेकिन चूँकि यह वास्तवमें बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिए मैंने कुमारी पीटर्सनसे इसे छापनेकी अनुमति माँगी, और उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी।
इसे छापते हुए मुझे इस कारणसे और अधिक प्रसन्नता हो रही है कि इसके आधारपर मैं यह सिद्ध कर सकता हूँ कि असहयोग आन्दोलन न ईसाइयतके विरुद्ध है, न अंग्रेजोंके विरुद्ध है और न यूरोपीयोंके। यह तो धर्म और अधर्म, प्रकाश और अन्धकारका संघर्ष है।
मेरा यह दृढ़ विचार है कि आजके यूरोपका आचरण ईसाइयतकी भावनाका द्योतक नहीं बल्कि शैतानियतका द्योतक है। और जब शैतान अपने ओठोंपर ईश्वरका नाम लेकर सामने आता है उस समय वह सबसे अधिक सफल होता है। यूरोप आज केवल नाममात्रका ही ईसाई है। वास्तवमें वह पार्थिव समृद्धिके पीछे पागल है। ईसा मसीहने स्वयं कहा था : "किसी ऊँटके लिए सूईके छेदमें से पार हो जाना आसान है, लेकिन किसी धनी आदमीके लिए ईश्वरके साम्राज्यमें प्रवेश पाना असम्भव है।" आज उनके तथाकथित अनुयायी अपनी नैतिक प्रगतिका अन्दाजा अपनी पार्थिव सम्पत्तिसे लगाते हैं। इंग्लैंडका राष्ट्रगान ही ईसाइयतके विरुद्ध पड़ता है। जिस ईसा मसीहने अपने अनुगामियोंको अपने दुश्मनोंसे भी प्यार करनेका सन्देश दिया था, वे अपने दुश्मनोंके बारेमें कभी ऐसा नहीं कह सकते थे: "उसके शत्रुओंका मान-मर्दन हो, उनकी कूट योजनाएँ विफल हों।" डा॰ वैलेसने अपनी अन्तिम पुस्तकमें अपना यह सुविचारित विश्वास प्रस्तुत किया है कि विज्ञानकी जिस प्रगतिपर इतना अधिक गर्व किया जाता है उसने यूरोपका नैतिक स्तर ऊपर उठानेमें रंच-मात्र भी सहयोग नहीं दिया है। लेकिन पिछले महायुद्धने, यूरोपमें जिस सभ्यताका बोलबाला है, उसके शैतानी स्वरूपको इतना स्पष्ट कर दिया है जितना स्पष्ट वह पहले कभी नहीं हुआ था। विजेताओंने नैतिकताके सारे बन्धन तोड़ डाले हैं। घोरसे-घोर असत्य बोलने से भी वे बाज नहीं आये हैं। हर अपराधके पीछे उनका उद्देश्य धार्मिक अथवा आध्यात्मिक नहीं बल्कि भयंकर रूपसे भौतिक रहा है। लेकिन जो मुसलमान और हिन्दू सरकारके विरुद्ध संघर्ष कर रहे
- ↑ पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है।