हैं उनका उद्देश्य धर्म और सम्मानकी रक्षा करना है। अभी हालमें देशको स्तब्ध कर देनेवाली जो भयंकर हत्या हुई है उसके पीछे भी धार्मिक उद्देश्य ही बताया जाता है। निःसन्देह धर्मको उसकी विकृतियोंसे मुक्त करना आवश्यक है, लेकिन नैतिक उपलब्धिकी तुलनामें पार्थिव समृद्धिको प्राथमिकता देनेवाले लोगोंके झूठे नैतिक दावोंका खोखलापन दिखा देना भी उतना ही जरूरी है। किसी अज्ञानी धर्मान्ध व्यक्तिको गलत रास्तेसे विमुख करना आसान है, लेकिन पक्के बदमाशको बदमाशीसे हटाना आसान नहीं है।
लेकिन हम व्यक्तियों अथवा राष्ट्रोंपर आरोप नहीं लगा रहे हैं। व्यक्तिगत तौरपर यूरोपमें भी हजारों लोग अपने परिवेशसे ऊपर उठ रहे हैं। मैं तो यूरोपकी उस प्रवृत्तिके बारेमें लिख रहा हूँ जो उसके वर्तमान नेताओंमें दिखाई देती है। इंग्लैंड अपने नेताओं द्वारा भारतकी धार्मिक और राष्ट्रीय भावनाओंको अपने पैरों तले कुचले जा रहा है। वह आत्मनिर्णयके बहाने मेसोपोटामियाके तेल-क्षेत्रोंसे नाजायज फायदा उठानेकी कोशिश कर रहा है, हालाँकि अब शायद उसे वहाँसे हटना ही पड़े, क्योंकि उसके सामने और कोई विकल्प नहीं रह गया है। और फांसके नेतागण फ्रांसके नामपर आदमखोरोंको सिपाहियोंके रूपमें प्रशिक्षित कर रहे हैं और फ्रांस उनका हाथ नहीं रोकता। वह संरक्षक शक्तिके रूपमें अपने दायित्वकी बड़ी ही निर्लज्जताके साथ अवहेलना करता हुआ सीरियाके उत्साहको तोड़नेकी कोशिश कर रहा है। राष्ट्रपति विल्सनने[१]अपनी मूल्यवान चौदह-सूत्री योजनाको कूड़के ढेरपर फेंक दिया है।
भारत अहिंसक असहयोगके जरिये दरअसल बुराईकी इन्हीं सम्मिलित शक्तियोंके खिलाफ लड़ रहा है। और कोई चाहे ईसाई हो या यूरोपीय, अगर वह कुमारी पीटर्सनकी तरह यह महसूस करता है कि इस अन्यायको दूर करना ही है, तो वह असहयोग आन्दोलनमें शामिल होकर ऐसा कर सकता है। इस्लामकी प्रतिष्ठाके साथ धर्मकी रक्षाका सवाल जुड़ा हुआ है और भारतके सम्मानके साथ ऐसे प्रत्येक राष्ट्रका सम्मान जुड़ा हुआ है जो कमजोर है।
यंग इंडिया, ८-९-१९२०
- ↑ टॉमस वुड्रो विल्सन (१८५६-१९२४); संयुक्त राज्य अमरीकाके २८ वें राष्ट्रपति।