१३९. साम्राज्यके अछूत
गुजरातके अविस्मरणीय सम्मेलनने[१]प्रवासी भारतीयोंके दर्जेसे सम्बन्धित अपने प्रस्तावमें यह विचार व्यक्त किया है कि यह सवाल भी असहयोग करनेका एक और कारण बन सकता है। और वास्तवमें ऐसा हो सकता है। केनिया उपनिवेशने वहाँके भारतीयोंको उनके समस्त अधिकारोंसे वंचित कर देनेका निर्णय किया है, और वहाँके गवर्नरने इस निर्लज्जतापूर्ण निर्णयकी घोषणा की है। इस तरह खुले आम न्याय और औचित्यके नियमोंका गला घोटे जाते तो और कहीं नहीं देखा गया। लॉर्ड मिलनर[२]और श्री मॉण्टेग्यूने इस निर्णयका समर्थन किया है। और उनके भारतीय सहयोगी इस निर्णयसे सन्तुष्ट हैं। पूर्व आफ्रिकाका निर्माण भारतीयोंने किया, वहाँ उनकी संख्या अंग्रेजोंसे अधिक है, लेकिन तब भी वे कौंसिलमें प्रतिनिधित्वके अधिकारसे लगभग वंचित हैं। अब उनका निवास ऐसे स्थानोंतक सीमित किय जानेको है जहाँ अंग्रेज लोग नहीं रह सकते। उन्हें न कोई राजनीतिक सुविधा होगी और न भौतिक सुख-सुविधा ही। अपने परिश्रम, धन और बुद्धिसे उन्होंने जिस देशका निर्माण किया, उसी देशमें वे "अछूत" बन जानेवाले हैं। वाइसरायने बस इतना कहकर सन्तोष मान लिया कि उन्हें यह रवैया पसन्द नहीं है और न्यायकी प्रतिष्ठाके लिए उन्हें कौनसे कदम उठाने चाहिए, इसपर वे विचार कर रहे हैं। यह स्थिति उनके लिए कोई नई नहीं है। पूर्व आफ्रिकाके भारतीयोंने उन्हें भावी संकटकी चेतावनी दे दी थी। और अगर परमश्रेष्ठ अबतक राहत देनेका कोई उपाय नहीं ढूँढ पाये हैं तो वे भविष्यमें ढूँढ लेंगे, ऐसी कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती। मैं उनके भारतीय सहयोगियोंसे पूछना चाहता हूँ कि क्या वे अपने देशभाइयोंके अधिकारोंका यह अपहरण बरदाश्त कर सकते हैं।
दक्षिण आफ्रिकामें भी स्थिति इससे कम चिन्ताजनक नहीं है। मेरी आशंकाएँ सत्य सिद्ध हो रही हैं और भारतीयोंके स्वदेश लौटनेकी बातके ऐच्छिक रहनेके बजाय अनिवार्य हो जानेकी ही अधिक सम्भावना है। यह एशियाई विरोधी आन्दोलनका परिणाम है, क्षुब्ध भारतीयों को राहत देनेके लिए उठाया गया कदम नहीं। यह बहुत-कुछ असावधान भारतीयोंको फँसानेके लिए फैलाये गये जालके समान दिखता है। संघ- सरकार एक राहत देनेवाले कानूनके एक खण्डसे गैरकानूनी लाभ उठाती जान पड़ती है। इस कानूनका उद्देश्य, अब जिस उद्देश्यको इसके साथ जोड़ दिया गया है, उससे बिलकुल भिन्न था।
और जहाँतक फीजीकी बात है, स्पष्ट है कि वहाँ मानवताके प्रति जो घोर अपराध किया गया है, उसे दबा दिया जायेगा। मुझे आशा है कि जबतक फीजीमें सैनिक शासनकी कार्रवाइयोंकी जाँच नहीं कराई जाती तबतक कोई भी भारतीय वहाँ