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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२८४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानको तैयार नहीं होगा। लगता है भारत सरकारने ऐसा वचन दे दिया है कि जो आयोग मौकेपर पहुँचकर स्थितिकी जाँच करनेके लिए जानेवाला था, उसकी रिपोर्ट अगर अनुकूल हुई तो भारतसे फीजीको मजदूर भेजे जायेंगे।

ब्रिटिश गियानाके सम्बन्धमें वहाँसे प्राप्त अखबारोंसे मालूम होता है कि वहाँ जो मिशन गया था, वह अभीसे यह घोषणा कर रहा है कि भारतसे मजदूर आयेंगे। मुझे तो दुनियाके उस हिस्सेमें भारतीयोंके लिए कुछ कर सकनेकी कोई सच्ची सम्भावना दिखाई नहीं देती। ब्रिटिश साम्राज्यके किसी भी हिस्सेमें हमारी कोई जरूरत नहीं है। अगर जरूरत है तो सिर्फ अछूतों——अन्त्यजों——के रूपमें, ताकि हम वहाँके यूरोपीय उपनिवेशियोंके लिए मेहतरोंका काम किया करें।

स्थिति स्पष्ट है। हम अपने ही घरमें अछूत बने हुए हैं। हमें वही चीज मिलती है जो सरकार देना चाहती है; वह नहीं मिलती जो हम माँगते हैं और जो माँगनेका हमें अधिकार है। हमें पूरी रोटी कभी नहीं मिल सकती, जूठे टुकड़े भले मिल जायें। मैंने तरह-तरहके व्यंजनोंसे सजी मेजसे ऐसे बड़े-बड़े और मन-लुभावने टुकड़े फेंके जाते देखे हैं और मैंने देखा है कि अपनी टोकरीमें इन बड़े-बड़े टुकड़ोंको गिरते देखकर हमारे अछूत भाइयोंकी——हिन्दुत्वपर कलंक लगानेवाले इन लोगोंकी——आँखोंमें चमक आ गई है। लेकिन जो उच्चतर श्रेणीके हिन्दू हैं, वे अपनी टोकरियाँ एक खासी दूरीसे ही भरते हैं, और जानते हैं कि ये टुकड़े उनके उपयोगके लायक नहीं हैं। इसी तरह अपनी बारी आने पर हमें गवर्नरी आदिके ऐसे बड़े-बड़े पद भी मिल सकते हैं, जिनकी असली शासकोंको कोई जरूरत नहीं रह गई है या यों कहें कि जिन्हें अब वे अपने भौतिक हितोंकी सुरक्षाकी दृष्टिसे——भारतपर अपना राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व कायम रखनेके लिए——अपने पास नहीं रख सकते। वह घड़ी आन पहुँची है जब हमें अपनी सही स्थितिका एहसास होना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ८-९-१९२०
 

१४०. स्वदेशी

स्वदेशीका प्रचार कमोबेश संगठित रूपसे पिछले अठारह महीनोंसे चल रहा है। इसके कुछ परिणाम तो बड़े आश्चर्यजनक और सन्तोषप्रद हैं। पंजाब, मद्रास और बम्बईमें इसकी जड़ें काफी जम गई हैं। देशके इन हिस्सोंमें हाथसे कताई और बुनाईका काम धीरे-धीरे निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। जिन घरोंकी स्त्रियाँ कभी कोई काम नहीं करती थीं, उन घरोंकी स्त्रियोंने भी इसके बलपर हजारों रुपये अर्जित किये हैं। और अगर इस ढंगका काम अभी इतना ही हो पाया है तो उसका कारण है कार्यकर्त्ताओंकी कमी।