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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२८६

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इसलिए सच्ची स्वदेशी इस बातमें निहित है कि प्रत्येक घरमें चरखेका प्रवेश हो और प्रत्येक परिवार अपना कपड़ा खुद तैयार करे। आज बहुत-सी पंजाबी स्त्रियाँ ऐसा कर रही हैं। और भले ही हम अपनी कपड़ेकी आवश्यकता सम्पूर्णतः पूरी न कर सकें, लेकिन इस तरह हम प्रति वर्ष करोड़ों रुपये बचायेंगे। जो भी हो, एकमात्र स्वदेशी यही है कि हाथसे कताई और बुनाई करके कपड़ेका अधिक उत्पादन किया जाये। चाहे हम हाथसे कताई और बुनाईका काम करें या न करें, कमसे-कम इतना समझ लेना जरूरी है कि सच्ची स्वदेशी क्या है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ८-९-१९२०
 

१४१. लोकशाही बनाम भीड़शाही

अगर ऊपरसे देखें तो भीड़शाही और लोकशाही के बीच भेदकी रेखा बहुत क्षीण है। फिर भी, यह भेद सर्वथा पूर्ण है और सदा बना रहेगा।

आज भारत बड़ी तेजीसे भीड़शाहीकी अवस्थासे गुजर रहा है। यहाँ मैंने जिस क्रियाविशेषणका प्रयोग किया है, वह मेरी आशाका परिचायक है। दुर्भाग्यवश ऐसा भी हो सकता है कि हमें इस अवस्थासे बहुत धीरे-धीरे छुटकारा मिले। लेकिन बुद्धिमानी इसीमें है कि हम हर सम्भव उपायका सहारा लेकर इस अवस्थासे जल्दीसे-जल्दी छुटकारा पा लें।

हममें भीड़के शासन-प्रवाहमें बह जानेकी प्रवृत्ति बहुत अधिक है। १० अप्रैल, १९१९ को अमृतसरमें भीड़का ही शासन था। और वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन अहमदाबादमें भी भीड़के ही शासनका दिन था। यह शासन अनुशासनहीन विध्वंसलीलाके रूपमें प्रकट हुआ, और इसलिए वह विवेकशून्य, लाभ-रहित, दुष्टतापूर्ण और हानिकर था। युद्ध योजनाबद्ध विध्वंस है, और इसमें जितना रक्तपात होता है उतना रक्तपात आजतक किसी भीड़ने नहीं किया होगा। किन्तु फिर भी हम युद्धकी चाहना करते हैं, क्योंकि कुछ युद्धोंके जो अस्थायी किन्तु चमत्कृत कर देनेवाले परिणाम निकले हैं उनको देखकर हम धोखेमें आ गये हैं। इसलिए अगर भारतको हिंसा द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करनी है तो यह अनुशासित और (अगर हिंसाके साथ भी प्रतिष्ठा जोड़ी जा सकती हो तो) प्रतिष्ठित हिंसा अर्थात् युद्धके द्वारा ही प्राप्त करनी होगी। उस हालतमें यह भीड़शाही नहीं, लोकशाहीका काम माना जायेगा।

लेकिन आज मेरा उद्देश्य अहमदाबादके नमूनेकी भीड़शाहीके बारेमें लिखना नहीं है। मैं तो उस ढंगकी भीड़शाहीके सम्बन्धमें लिखना चाहता हूँ जिससे मेरा अधिक परिचय है। कांग्रेस भीड़के प्रदर्शनका माध्यम है, और हालाँकि इसका संगठन विचारवान् स्त्री-पुरुष करते हैं फिर भी इसे उस अर्थमें, और केवल उसी अर्थमें, भीड़का प्रदर्शन कहा जा सकता है। हमारे सार्वजनिक प्रदर्शन भी निर्विवाद रूपसे भीड़की