छोड़ देनेका आग्रह किया गया तो उसका यही अर्थ होगा कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले हमारे कुछ देशवासियोंकी अवस्थाका अनुचित लाभ उठाया जा रहा है।
यंग इंडिया, ७-७-१९२०
३. पत्र : न॰ चि॰ केलकरको[१]
बम्बई-७
२ जुलाई, [१९२०][३]
आपने उत्तर देने में बड़ी तत्परता दिखाई; उसके लिए धन्यवाद।
मैं...वापस भेज रहा हूँ...आप उसे [अपने पास] रख सकते हैं।
मैं आपके सुझावको ध्यान में रखते हुए [कांग्रेसके] मान्य सिद्धान्तका कोई दूसरा पर्याय सोच निकालूँगा। निस्सन्देह, हम लोगोंको उसे अधिक से अधिक व्यापक बनाना चाहिए।
मैं इस बातसे सहमत हूँ कि कांग्रेस समितियोंकी सदस्यताके लिए हमें कोई शुल्क निर्धारित करनेकी जरूरत नहीं। शायद आप एक न्यूनतम शुल्क रखनेकी बातसे सहमत होंगे।
तालुका और जिला समितियाँ बनानेकी विधि निर्धारित कर देना वांछनीय है। —आपके इस सुझावको मैं स्वीकार करता हूँ।
अगर आप अति व्याप्तिका दोष बचाना चाहते हैं और साथ ही कांग्रेस संविधानको काफी सुसंगठित और वैज्ञानिक रूप भी देना चाहते हैं तो आप देखेंगे कि विभिन्न संस्थाओंको इससे सम्बद्ध करनेकी गुंजाइश नहीं है। अगर कोई संस्था इसमें अपना प्रतिनिधित्व चाहे तो उसे विभिन्न जमातों में से किसी-न-किसीमें अवश्य शामिल होना पड़ेगा।
आप चाहे १,००० की सीमाको स्वीकार करें या उससे आगे जायें, मेरे खयालसे ध्यान यह रखना है कि सदस्योंकी संख्या इतनी ही रखी जाये जिससे काम करनेमें
- ↑ इस पत्र की दफ्तरी नकलको कई जगइसे दीमकने खा डाला है। इस तरह जो शब्द टूट गये हैं, उन्हें अंग्रेजीमें अनुमानसे पूरा कर दिया गया है।
- ↑ गांधीजीकी लिखावटमें "कांग्रेस" शब्द इस बातका संकेत करता है कि यह पत्र किस फाइल में रखा जाना था।
- ↑ पत्रमें जिस संविधानकी चर्चा है, वह १९२० में स्वीकृत किया गया था। देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ५३० ।
- ↑ नरसिंह चिंतामण केलकर, (१८७२-१९४७); महाराष्ट्रके राष्ट्रवादी नेता; तिलकके अनुपायी और उनके जीवन चरित्र लेखक, मराठाके सम्पादक।