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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाधा न पड़े। इसके बिना कांग्रेस आजकी ही तरह एक इतनी बड़ी संस्था बनी रहेगी कि उसे सँभालना मुश्किल होगा और हमारा उतना प्रभाव न होगा जितना कि अन्यथा हो सकता है। संविधानका मसविदा तैयार करते समय मैंने कांग्रेसको ऐसा प्रातिनिधिक स्वरूप देनेका प्रयास किया है जिससे उसके द्वारा पेश की गयी माँगें माननी ही पड़ें। इसलिए मैं आपसे निवेदन करूँगा कि सदस्य-संख्या सीमित करनेके बारेमें आप अपनी रायपर पुनः विचार करें।

प्रतिनिधियों (डेलीगेटों) द्वारा देय शुल्कके सम्बन्धमें आपने जो रकम सुझाई है। वह मुझे स्वीकार है।

मैं इस बात से भी सहमत हूँ कि अन्य शुल्क कांग्रेस निर्धारित न करे।

अध्यक्ष चुननेके नियम पूर्ववत् रखे जायें। मैं आपको यही बात लिखना चाहता था परन्तु तबतक मेरा पत्र जा चुका था। लेकिन सभापतिके चुनावके अवसरपर जो भारी-भरकम लच्छेदार भाषण दिये जाते हैं, उनकी परम्पराको मैं समाप्त कर देना चाहूँगा। स्वागत समितिके अध्यक्षके अतिरिक्त केवल एक-दो सबसे अच्छे वक्ता यथासम्भव कमसे कम शब्दोंमें अध्यक्षका परिचय दे दें।

आपने कोषाध्यक्षके बारेमें तथा ब्रिटिश कांग्रेस कमेटीको पैसा देनेके बारेमें जो सुझाव दिये हैं, उन्हें भी मैं मूल्यवान मानता हूँ।

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके सदस्योंके चुनावोंके सम्बन्धमें आपने जो सुझाव दिया है, उसका औचित्य मेरी समझमें नहीं आया है।

प्रस्तावका मसविदा और सुझाव बिलकुल दुरुस्त हैं।

आपका समय...बिलकुल आपके ही योग्य है और उचित है।

प्रदर्शनवाला पहलू मुझे पसन्द नहीं। कांग्रेसका पूरा अधिवेशन ऐसा होना चाहिए कि वह अच्छी तरह विचार-विमर्श भी कर सके और उसका प्रदर्शनात्मक मूल्य भी हो। अगर आप इन दोनोंको अलग कर देंगे तो प्रदर्शनका महत्त्व समाप्त हो जायेगा। अधिवेशनमें जो विचार-विमर्श होता है दर्शकगण उसीको सुननेके लिए टिकट खरीदकर अन्दर आते हैं। यहाँ हम इंग्लैंडकी कॉमन्स सभाका अनुकरण कर सकते हैं। वहाँकी दर्शक दीर्घाकी याद कीजिए। जब हम प्रतिनिधियोंकी संख्याको सीमित कर देंगे तब उन्हें सावधानीपूर्वक रस्सियोंके घेरेके अन्दर रखकर दर्शकोंके समुदायसे पृथक कर सकेंगे। आज तो हमारा पंडाल भी कामकी दृष्टिसे उतना ही अव्यवस्थित होता है जितनी कि हमारी कार्यवाही। आप अपने कार्यक्रममें कामपर जोर दें, उसे इसी दृष्टिसे योजित करें तो आप धीरे-धीरे एक ऐसा पंडाल बना सकेंगे जो अधिवेशनकी नई आवश्यकताओंको देखते बिलकुल उपयुक्त और काफी प्रभावकारी हो तथा जिसे बनाने में आजकी अपेक्षा खर्च भी कम हो।

मेरा खयाल है कि मैंने आपके द्वारा उठाये गये प्रत्येक मुद्देपर अपने विचार प्रकट कर दिये हैं। आशा है कि अन्य दोनों सज्जन[१]भी आपकी जैसी तत्परतासे ही काम लेंगे।

  1. आयंगर और सेन; देखिए खण्ड १७, पृष्ठ ५३०-३१ ।