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१४२. तीन राष्ट्रीय नारे

मद्रासके दौरेके सिलसिलेमें बेजवाड़ामें मैंने राष्ट्रीय नारोंके सम्बन्धमें कुछ बातें कही थीं और लोगोंको सुझाव दिया था कि व्यक्ति विशेषकी अपेक्षा आदर्शोंकी जयके नारे लगाना ज्यादा अच्छा होगा। मैंने श्रोताओंसे "महात्मा गांधी की जय" और "मुहम्मद अली शौकत अलीकी जय" के बदले "हिन्दू-मुसलमानोंकी जय" का नारा लगानेको कहा था। मेरे बाद भाई शौकत अली बोले थे। उन्होंने तो इस सम्बन्धमें नियम ही निश्चित कर दिया। उन्होंने कहा कि हिन्दू-मुस्लिम एकताके बावजूद मैं देखता हूँ कि अगर हिन्दू "वन्देमातरम्" का नारा लगाते हैं तो मुसलमान "अल्लाह ओ अकबर" की आवाज बुलन्द करते हैं और इसी तरह अगर मुसलमान "अल्लाह ओ अकबर" कहते हैं तो हिन्दू "वन्देमातरम्" की आवाज लगाते हैं। भाई अलीने ठीक ही कहा कि यह चीज कानोंको बहुत कड़वी लगती है और इससे प्रकट होता है कि लोग अब भी एक मनसे काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए केवल तीन ही नारे स्वीकार किये जाने चाहिए। एक तो "अल्लाह ओ अकबर" का नारा हिन्दू और मुसलमान दोनोंको उल्लासके साथ लगाना चाहिए और इस तरह अपना यह विश्वास प्रकट करना चाहिए कि ईश्वर ही महान् है और कोई नहीं। दूसरा नारा होना चाहिए "वन्देमातरम्" या "भारतमाताकी जय"। तीसरा होना चाहिए "हिन्दू-मुसलमानकी जय", जिसके बिना भारतको जय नहीं मिल सकती और न लोग अपने इस विश्वासको सच्ची अभिव्यक्ति ही दे सकते हैं कि ईश्वर सबसे महान् है। बेशक मैं चाहता हूँ कि अखबारों और सार्वजनिक कार्य करनेवाले लोग मौलाना साहबका सुझाव अपनायें और जनताको केवल ये तीन नारे लगानेकी प्रेरणा दें। इन तीनोंमें बहुत अर्थ भरा हुआ है। पहला नारा एक प्रार्थना, और अपनी लघुताकी आत्म-स्वीकृति है और इस तरह यह विनयशीलताका द्योतक है। यह नारा सभी हिन्दुओं और मुसलमानोंको श्रद्धा और भक्तिसे लगाना चाहिए। हिन्दुओंको ऐसे अरबी शब्दोंका प्रयोग करनेसे कतरानेकी जरूरत नहीं जिनमें न केवल आपत्तिके लायक कोई बात नहीं है बल्कि जो हमें ऊपर उठानेवाले हैं। ऐसी बात नहीं है कि ईश्वरको कोई खास जबान ज्यादा पसन्द है। "वन्देमातरम्" के साथ जिन अद्भुत बातोंकी स्मृति जुड़ी हुई है वह तो है ही; इसके अलावा यह एक राष्ट्रीय आकांक्षा, अर्थात् भारत पूरी ऊँचाईतक उठे, की अभिव्यक्ति है। और मैं "भारतमाताकी जय" की अपेक्षा "वन्देमातरम्" को ज्यादा पसन्द करूँगा, क्योंकि यह उदारतापूर्वक बंगालकी बौद्धिक और भावात्मक उच्चताको स्वीकार करना होगा। चूँकि हिन्दुओं और मुसलमानोंके हृदयोंके मिलनके बिना भारत कुछ रह नहीं जाता, इसलिए "हिन्दू-मुसलमानकी जय" एक ऐसा नारा है जिसे हमें कभी भूलना नहीं चाहिए।

इन नारोंके सम्बन्धमें कोई विवाद नहीं होना चाहिए। जैसे ही कोई व्यक्ति इनमेंसे कोई नारा शुरू करे, सभी लोगोंको अपना-अपना प्रिय नारा बुलन्द करनेके