बजाय उसी नारेको दुहराना चाहिए। जो इसमें शामिल न होना चाहें वे इससे अलग रह सकते हैं, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि जब एक नारा शुरू किया जा चुका हो तब बीचमें ही अपना नारा उठाना शिष्टाचारका उल्लंघन करना है। अगर तीनों नारे, जिस क्रममें उन्हें रखा गया है, उसी क्रममें लगाये जायें तो ज्यादा अच्छा होगा। साथ ही नारे लगातार बहुत देरतक नहीं लगाने चाहिए। जब कोई प्रिय नेता किसी स्टेशनसे गुजरता है तो अक्सर लोगोंको बहुत देरतक नारे लगाते सुना जाता है। मुझे तो नहीं लगता कि इस तरह लगातार चीखनेसे राष्ट्रका तनिक भी हित होता है, अलबत्ता चीखनेवालोंके फेफड़ोंकी अनजाने ही कुछ कसरत जरूर हो जाती है। इसके अलावा हम जिसके प्रति अपने मनका उद्गार व्यक्त करनेके लिए इस तरह लगातार चीखते जाते हैं, उसके धैर्य और समयका भी हमें खयाल रखना चाहिए। यह राष्ट्रीय शक्तिका अपव्यय है कि अपने नेताकी प्रशंसामें या किसी और बातपर पूरे तीस-तीस मिनटतक नारे लगाते रहें और इस तरह उस व्यक्तिके लिए भी इसके अलावा और कोई रास्ता न छोड़ें कि वह भीड़को चुपचाप ताकता रहे। हमें उचित-अनुचितका ध्यान रखना सीखना चाहिए।
यंग इंडिया, ८-९-१९२०
१४३. भाषण : कलकत्तेकी विशेष कांग्रेसमें[१]
८ सितम्बर, १९२०
मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि इस महान् सम्मेलनके समक्ष यह प्रस्ताव रखनेका जो अवसर मुझे दिया गया है उससे मेरे कंधोंपर कितनी गम्भीर जिम्मेदारी आ पड़ी है। मैं यह भी समझता हूँ कि आप यह प्रस्ताव मंजूर कर लेंगे तो मेरी अपनी और आपकी भी मुश्किलोंमें कितनी वृद्धि हो जायेगी। मेरा प्रस्ताव आप मंजूर करें, इसका यही अर्थ होगा कि अबतक जनता अपने हक और सम्मानकी रक्षाके लिए जो नीति अपनाती रही, उसे हम बिलकुल बदल रहे हैं। मैं पूरी तरह जानता हूँ कि हमारे बहुतसे नेता इसके विरुद्ध हैं——ऐसे नेता जिन्होंने मातृभूमिकी सेवामें मेरी अपेक्षा कहीं अधिक समय और शक्ति लगाई है। चाहे जिस कीमतपर भी सरकारकी शासननीतिमें क्रान्ति कर डालनेको कहनेवाली इस नीतिका विरोध करना उन्हें अपना कर्त्तव्य प्रतीत होता है। यह सब पूरी तरह समझकर मैं आपके सामने खड़ा हूँ। मैं यह प्रस्ताव परमेश्वरसे डरते हुए और स्वदेशके प्रति अपने धर्मके भानसे प्रेरित होकर पेश कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप उसका स्वागत करें।
- ↑ गांधीजीने असहयोग सम्बन्धी अपना प्रस्ताव इस भाषणके साथ पेश किया था। इसका मिलान यंग इंडिया, १५-९-१९२० में प्रकाशित विवरणसे भी कर लिया गया है।