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भाषण : कलकत्तेकी विशेष कांग्रेसमें

 

गांधीका खयाल छोड़ दो

आप घड़ी-भरके लिए मुझे भूल जाइये; मुझपर ये आरोप हैं कि मैं बड़ा 'महात्मा' हूँ और तानाशाही चलाना चाहता हूँ। मैं साहसपूर्वक कहता हूँ कि मैं आपके पास 'महात्मा' बनकर नहीं आया और न हुकूमत करनेकी आकांक्षासे आया हूँ। मैं तो आपके सामने अपने अनेक वर्षोंके आचरणमें असहयोगका जो अनुभव मुझे हुआ, उसे उपस्थित करने खड़ा हुआ हूँ। मैं इस बातको माननेसे इनकार करता हूँ कि असहयोग देशके लिए बिलकुल नयी चीज है। हजारोंकी भीड़वाली सैकड़ों सभाओंने असहयोगको स्वीकार किया है और मुसलमानोंने तो पहली अगस्तसे उसे आचरणमें लाने लायक स्वरूप भी दे दिया है। निश्चित किये हुए कार्यक्रमकी अधिकांश बातें थोड़े-बहुत जोशके साथ अमलमें आती जा रही हैं। मैं फिर आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप इस महत्त्वके प्रश्नपर विचार करनेमें आदमियोंकी बात मत सोचिए, परन्तु धीरज और शान्तिसे प्रस्तावके गुण-दोषोंपर अपना मत निश्चित कीजिये।

सहनशक्तिको तालीम

लेकिन प्रस्तावको महज मंजूर कर लेनेसे आप छूट नहीं जायेंगे। प्रत्येकपर प्रस्तावकी जो-जो धारा लागू होती हो, उस हदतक उसपर अमल शुरू कर देना पड़ेगा। मेरा अनुरोध है कि आप धीरज रखकर मेरा कहना सुन लीजिये। तालियाँ भी न बजाइये और आवाजकशी भी मत कीजिये। मेरे अपने लिए तो आप ऐसा करें, तो भी मुझपर बहुत असर नहीं होगा। परन्तु तालियोंसे विचारोंका प्रवाह रुकता है और आवाजकशी करनेसे बोलने और सुननेवालोंके बीच जुड़ा हुआ तार टूट जाता है। इसलिए आपका अपना रवैया कुछ भी हो, फिर भी किसी वक्ताका मजाक उड़ाकर आप उसे बिठा न दीजिये। असहयोगमें तो अनुशासन और त्यागकी साधनाकी बात है और विरोधी पक्षके मतको धीरज और शान्तिसे समझ लेना असहयोगका लक्षण है। बिलकुल ही विरुद्ध विचारोंको भी आपसमें सह लेनेकी वृत्ति जबतक हम पैदा नहीं कर लेंगे, तबतक असहयोग असम्भव है। क्रोधके वातावरणमें असहयोग चल ही नहीं सकता। मैं कड़वे अनुभवसे एक बहुत महत्त्वका पाठ सीखा हूँ कि क्रोधको दबा दिया जाये। जैसे दबाकर रखी गई उष्णतामें से शक्ति उत्पन्न होती है वैसे ही संयममें रखे गये क्रोधसे भी ऐसा बल पैदा किया जा सकता है कि सारे संसारमें हलचल मचा दे। कांग्रेसमें आनेवालों से मैं एक ही सेनाके सैनिक-मित्रके नाते पूछता हूँ कि हम मत-विरोधके बावजूद एक-दूसरेको सहन करना सीख लें तो इससे अधिक अनुशासन और क्या हो सकता है?

कांग्रेस और अल्पमत

मुझसे कहा गया है कि मैं तो बस विनाशका ही कार्य करता रहता हूँ अपने प्रत्तावसे मैं देशके राजनैतिक जीवनमें दरार डाल रहा हूँ। कांग्रेस किसी खास दलकी संस्था नहीं है। प्रत्येक मत-मतान्तरके लिए कांग्रेसका मंच खुला होना चाहिए। उसकी