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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संख्या थोड़ी है, इसीलिए किसी दलको कांग्रेस छोड़कर चले जानेकी जरूरत नहीं। उन्हें समय पाकर देशके लिए अपना मत रुचिकर बनाकर अपना ही बहुमत बना लेनेकी आशा रखनी चाहिए। हाँ, कांग्रेस द्वारा निन्दित किसी भी नीतिको कांग्रेसके नामसे कोई अख्तियार नहीं कर सकता। आप मेरा ढंग नापसन्द करेंगे तो मैं कोई कांग्रेस छोड़कर नहीं चला जाऊँगा। आज मेरे विचारोंका अल्पमत हो, तो जबतक वह बदलकर बहुमत नहीं बन जायेगा, तबतक मैं कांग्रेसको समझाता ही रहूँगा।

एकमात्र उपाय——असहयोग

खिलाफतके सम्बन्धमें अन्याय हुआ है, इस बारेमें दो मत हैं ही नहीं। जो भी कुर्बानी करनी पड़े उसे करके यदि मुसलमान इस समय अपनी इज्जतकी रक्षा नहीं करेंगे तो वे इज्जतके साथ रह नहीं सकेंगे और अपने हजरत पैगम्बरके धर्मका पालन नहीं कर सकेंगे। पंजाबपर सितम ढाये गये; और यह समझ लीजिये कि जिस दिन एक भी पंजाबीको पेटके बल चलना पड़ा, उस दिन सारा भारत पेटके बल चला। यदि हम भारतकी योग्य सन्तान हैं तो हमें यह कलंकका टीका मिटा ही डालना होगा। इन दो जुल्मोंका न्याय करानेके लिए हम महीनोंसे जूझ रहे हैं, परन्तु अभीतक हम ब्रिटिश सरकारको रास्तेपर नहीं ला सके। क्या लोग अबतक, इतना सब-कुछ करनेके बाद, इतना जोश और लगाव प्रकट करनेके बाद केवल अपनी क्रोधकी भावनाका थोथा प्रदर्शन करके ही बैठ रहना पसन्द करेंगे। अध्यक्ष महोदयने अपने अध्यक्षीय भाषणमें पंजाबके जुल्मोंकी जो भर्त्सना की है उससे जोरदार भर्त्सना आपने शायद ही सुनी हो। अगर कांग्रेस अनिच्छुक अधिकारियोंको न्याय करनेके लिए विवश नहीं कर पाती तो फिर वह अपने अस्तित्वकी सार्थकता कैसे सिद्ध करेगी? अपने सम्मानकी रक्षा कैसे करेगी? और उनके खूनसे सने हुए हाथोंसे कोई मेहरबानी स्वीकार करनेसे पहले यदि वह उनसे अपने कियेपर पश्चात्ताप नहीं प्रकट करा पाती तो यह कैसे कहा जा सकता है कि उसने न्याय प्राप्त कर लिया या अपने सम्मानकी रक्षा कर ली?

असहयोगकी सर्वोत्तम योजना

इसी कारण मैं अपनी असहयोगकी योजना आपके सामने रख रहा हूँ और आपसे आग्रह कर रहा हूँ कि इसकी जगह किसी भी दूसरी योजनाको आप मंजूर न करें। मैं आपसे यह इसलिए नहीं कहता कि मुझे अपनी योजनाका आग्रह है। मेरे कहनेका मतलब यह है कि आप मेरी योजनाको तभी मंजूर कीजिये जब खूब विचार करके देख लेनेपर और कोई योजना इससे बढ़कर मालूम न हो। मैं यह दावा करता हूँ कि इस योजनाको लोगोंकी ओरसे काफी मात्रामें समर्थन मिला है और मैं आपसे फिर यह कहनेकी हिम्मत करता हूँ कि इसपर आप अमल करें तो एक ही वर्षमें स्वराज्य ले सकते हैं। यह विराट् समाज इस प्रस्तावको केवल पास कर दे, इतना ही काफी नहीं, परन्तु लोग देशकी मौजूदा हालतको ध्यानमें रखकर दिन-दिन अधिक जोशके साथ उसपर अमल करें, तभी वह फलदायी हो सकता है।