किये बिना अपने प्रस्तावमें किया गया संशोधन स्वीकार कर लिया। इतनी ही बात है कि वह मेरे प्रस्तावकी सुन्दरताको जरा बिगाड़ देता है। मेरे नम्र मतानुसार प्रस्तावके बहिष्कार सम्बन्धी वे शब्द कार्यक्रमके सन्तुलनको अवश्य बिगाड़ते हैं। परन्तु यहाँ मैं साँचेमें ढले हुए कार्यक्रमकी वकालत करने खड़ा नहीं हुआ हूँ। मुझे तो लोगोंके आगे व्यावहारिक कार्यक्रम रखना है और मैं सहज ही स्वीकार कर लेता हूँ कि यदि हमसे विदेशी मालका बहिष्कार हो सके तो वह जबरदस्त चीज है। ऐसा बहिष्कार और स्वराज्य दोनों आपको पसन्द हों तो प्रस्तावके अन्तिम पैरेमें उनका उल्लेख है।
परिश्रमपूर्वक तैयार किया हुआ कार्यक्रम
अन्तमें मैं आपसे इस मामलेपर खूब गहरा विचार करके मत देनेका अनुरोध करता हूँ। उसमें आप मेरा खयाल न करें। मैंने देशकी सेवाएँ की हों तो उनका खयाल बीचमें न आने दीजिये। यहाँ उनका मूल्य नहीं हो सकता। मेरा यह जरा भी दावा नहीं है कि मैं जो कार्यक्रम देशके सामने रखूँ, वह भूल-रहित ही होगा। मैं इतना ही दावा करता हूँ कि मैंने यह कार्यक्रम तैयार करनेमें बहुत ही मेहनत की है, खूब विचार किया है और इसी निश्ववपर पहुँचा हूँ कि जो व्यावहारिक हो वही कार्यक्रम तैयार किया जाये। इन दो बातोंका आप अवश्य ध्यान रखें। आपके पास काम करनेवाली संस्था भी मौजूद है। फिलहाल यह तरीका तय करते हुए, विचार करनेके लिए ही सही, कार्यक्रमको प्रत्यक्ष स्वीकार करनेवाले हजारों अनुयायी आपके साथ खड़े हैं।
नवजीवन, १९-९-१९२०
१४४. भाषण : असहयोग प्रस्तावकी आलोचनाके उत्तरमें[१]
८ सितम्बर, १९२०
मैं जानता हूँ कि मुझे आपके प्रति अपना एक कर्तव्य निभाता है; असहयोग प्रस्तावके मुद्दोंपर जो आपत्तियाँ उठाई गई हैं, उनमें से कुछका उत्तर देना है। आपने अबतक एकके अलावा और सभी भाषण पूरे सम्मान और मनोयोगके साथ सुने हैं। मुझे इस बातका बड़ा दुःख है कि आपने श्री जमनादास द्वारकादासका[२]भाषण सुननेसे इनकार कर दिया। आपने पण्डित मालवीय, श्री जिन्ना और श्रीमती बेसेंटके भाषण सुने——और ये तीन व्यक्ति ही अपने महत्त्वके कारण हजारके बराबर हैं।