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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपने श्रीमती बेसेंट और अन्य अनेक वक्ताओंकी दलीलें सुनीं। इन सबने देशकी बड़ी सेवा की है। वे वर्षोंसे कांग्रेसका नेतृत्व कर रहे हैं, और उन्होंने अपनी शक्तिभर आपकी सेवा की है। मैं जानता हूँ कि आप मेरे प्रस्तावके विरुद्ध पेश की गई उनकी दलीलोंपर पूरा ध्यान देंगे, और वे इस लायक हैं भी। लेकिन साथ ही, यहाँ मैं आपसे यह भी कह देना चाहूँगा कि मैं इस बातके लिए बहुत उत्सुक था कि ये लोग मुझे समझा दें कि मैंने निर्णय करनेमें कहाँ भूल की या अन्य कोई भूल हुई है। लेकिन अपने भाषणोंसे वे मुझे ऐसा-कुछ नहीं समझा पाये।

श्री दास और श्री जिन्नाका कहना है कि यह कार्य अव्यावहारिक है। क्या इसे कार्यान्वित नहीं किया जा सकता? मैं तो आपसे कहूँगा कि इस कार्यक्रमकी जो बात जिस व्यक्तिसे सम्बन्धित है, उसको वह व्यक्ति आज ही कार्यरूप दे सकता है। प्रस्तावमें एक क्रियाविशेषणका प्रयोग किया गया है——"धीरे-धीरे"। श्री दासने इस शब्दपर काफी जोर दिया है और उनका जोर देना बिलकुल ठीक ही था। इसमें उनका मंशा यह दिखाना था कि इस तरह कमसे-कम——स्कूलों और अदालतोंके——दो मामलोंमें कार्यक्रमकी अव्यावहारिकता स्वीकार की गई है। मैं नम्रतापूर्वक उनसे असहमति प्रकट करता हूँ। इस क्रियाविशेषणको स्थान देनेका मतलब है अपनी कमजोरीके लिए गुंजाइश रखना और इस बातको स्वीकार करना कि हम अभी पूरी तरहसे तैयार नहीं हैं। मैं मानता हूँ कि इसके कारण ये दो विषय बिलकुल ठप हो जा सकते हैं। यह बात बहुत हदतक इसपर निर्भर करेगी कि राष्ट्रके भीतर सचमुच कितनी क्षोभकी भावना जगी है, और उससे भी अधिक इसपर कि सच्चे कार्यकर्त्ता इस कार्यक्रमके लिए कितना काम करते हैं। लेकिन आप इतना तो समझ ही रखिए कि जबतक केन्द्रीय खिलाफत समिति द्वारा स्थापित असहयोग समितिका अस्तित्व बना हुआ है, तबतक ये और ऐसे ही अन्य बहुत-से विषय आपकी स्वीकृति के लिए आपके सामने रखे जाते रहेंगे; आपको आर्थिक नहीं बल्कि राष्ट्र-हित, केवल राष्ट्र-हितसे सम्बन्धित, हर तरहके प्रलोभन दिये जाते रहेंगे; और आपकी देशभक्तिको झकझोरने के लिए हर तरहकी कोशिशें जारी रहेंगी, ताकि आपको कर्मके लिए प्रेरणा मिले। अपने सिर्फ डेढ़ महीनेके ही अनुभवके बाद मुझे इस बातमें तनिक भी सन्देह नहीं रह गया है कि हमें देशका पूरा सहयोग मिलेगा। मैं मानता हूँ कि यह कार्यक्रम अव्यावहारिक नहीं है, क्योंकि जो कोई भी इसमें निहित बातों को कार्यान्वित करना चाहेगा, आज ही कर सकता है। ऐसा नहीं कि यह बात बिलकुल असम्भव है, क्योंकि अगर कोई विदेशी मालका पूरा बहिष्कार करना चाहे तो वह ऐसा कर सकता है।

लेकिन मेरी नम्र सम्मतिमें, अन्य विषयोंसे भिन्न, यह विषय लगभग असम्भव अवश्य है। वैसे यह चीज सिद्धान्ततः बिलकुल सही है, लेकिन मैंने अपने कार्यक्रममें इस विषयको शामिल करनेके कारण आपको बता दिये हैं। मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं राष्ट्रके सामने केवल वे ही विषय रखूँ जिन्हें, अगर राष्ट्र चाहे और इसके लिए वह तैयार हो तो, आज ही व्यावहारिक रूप दिया जा सके।