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असहयोग

मेरी भद्दी लिखावटके लिए क्षमा करें। महादेव देसाई[१]बिजौलिया गया हुआ है; और मेरे दूसरे सहायकके घरमें मातम हो गया है।[२]

मो॰ क॰ गांधी

पेन्सिलसे लिखे गये अंग्रेजी मसविदे (एस॰ एन॰ ७४२० आर॰) से।

४. असहयोग

यह आशा करनेका कोई कारण नहीं है कि पहली अगस्तसे पहले खिलाफतके प्रश्नका सन्तोषजनक हल निकल आयेगा अथवा समझौतेकी शर्तोंकी फिरसे जाँच करनेका वचन दिया जायेगा; इसलिए हमें असहकार करनेकी तैयारी करनी चाहिए। समिति उसकी तैयारी कर रही है। इस बीच निम्नलिखित बातें की जा सकती हैं:

१. सरकार कर्ज लेनेकी जो नई योजना घोषित करनेवाली है उसके अन्तर्गत उसे कर्ज न दें।

२. सैनिक अथवा असैनिक नौकरीमें भरतीके लिए नाम दर्ज न करवायें।

मेसोपोटामियाको कब्जेमें रखनेका सरकारको कोई अधिकार नहीं है। मेन्डेटका अर्थ सच कहो तो कब्जा करनेके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। और फिर इस आशयकी खबरें समाचारपत्रोंमें प्रकाशित होती रहती हैं कि अरब-जनता वहाँ भारतीय सिपाहियोंको देखना भी नहीं चाहती। ऐसा हो या न हो, लेकिन प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह ऐसी नौकरीमें भरती न हो। मेसोपोटामियामें जो लोग जाते हैं वे तो पैसेके लिए ही जाते हैं। यदि हम और कुछ नहीं कर सकते तब भी हमें वहाँ जाना तो बन्द ही कर देना चाहिए।

अरबोंपर जोर-जबरदस्तीसे राज्य चलानेका हमारा काम नहीं है; इसके अतिरिक्त जो लोग स्वयं परतन्त्र नहीं रहना चाहते उन्हें दूसरोंको गुलाम बना रखनेकी इच्छा तो नहीं ही करनी चाहिए।

इसलिए सरकार द्वारा जारी की जानेवाली नई कर्ज-योजनामें पैसा देना तथा सब सरकारी नौकरियोंमें भरती होना—जिसमें मेसोपोटामिया आदि स्थानोंपर जाना भी शामिल है—हमें आजसे बन्द कर देना चाहिए।

इसके अतिरिक्त हमें उम्मीद है कि पहली अगस्तसे निम्नलिखित बातोंपर अमल किया जायेगा:

१. पदवियाँ और सम्मानके पदोंका त्याग।

२. विधान परिषदोंका बहिष्कार।

३. माँ-बापका अपने बच्चोंको सरकारी पाठशालाओंसे उठा लेना।

  1. महादेव देसाई (१८९२-१९४२); २५ वर्षतक गांधीजीके निजी सचिव।
  2. पत्रका यह अनुच्छेद गांधीजीकी लिखावटमें है।