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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसी परिस्थितियोंसे बचनेके लिए स्वराज्य आवश्यक है। मेरी नम्र सम्मतिमें इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन मैं इससे भी आगे कहूँगा कि श्री जिन्ना और श्री मालवीय, दोनोंने श्री पालका कार्यक्रम स्वीकार किया है। उसमें आप देखेंगे कि कुछ बातोंको तो कलसे ही कार्यान्वित करना है, और संशोधनमें यह कहा गया है कि दूसरी बातोंको बादमें कार्य-रूप दिया जायेगा, और जब हमारा दल[१]अपना काम कर रहा है, इस बीच भारतकी जनताको असहयोग कार्यक्रमकी कुछ बातोंपर अमल करना है। मेरा खयाल है कि कांग्रेस इस पूर्व- सूचनाको, समस्त राष्ट्रकी प्रतिष्ठामें किसी तरहका बट्टा लगाये बिना, अपने उद्देश्यके लिए बखूबी समझ सकती है; और ये दोनों शब्द-पद अर्थात् कांग्रेसका उद्देश्य और राष्ट्रकी प्रतिष्ठा परस्पर पर्यायवाची हैं।

अब मैं अपने कार्यक्रमके अन्तिम महत्त्वपूर्ण मुद्दे अर्थात् कौंसिलोंके बहिष्कारपर आता हूँ। इस सम्बन्धमें सबसे पहले तो यह स्वीकार करना चाहिए कि अबतक मैंने कौंसिलोंमें प्रवेश करनेके पक्षमें एक भी दलील नहीं सुनी है। इसके पक्षमें जो-कुछ कहा गया है वह बस इतना ही कि गत ३५ वर्षों में हमने इन कौंसिलोंके माध्यमसे थोड़ा-बहुत काम किया है; नई कौंसिलें दरअसल हमारे आन्दोलनके परिणामस्वरूप ही बनाई गई हैं। मैं स्वीकार करता हूँ कि बात ऐसी ही है। और चूँकि मतदाताओंको प्रभावित करके हम कौंसिलोंमें बहुमत प्राप्त कर सकते हैं इसलिए अब रोध-अवरोधकी नीतिके लिए ज्यादा गुंजाइश है——और मैं इस बातसे भी सहमत हूँ। अतः उनका कहना है कि अब हम कौंसिलोंमें जाकर सरकार अथवा प्रशासनको——जब जैसा प्रसंग हो——ठप कर दे सकते हैं। मैं इन लोगोंसे नम्रतापूर्वक कहूँगा कि इंग्लैंडके इतिहासका मैंने जो अध्ययन किया है, उससे मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि हर संस्था रोध-अवरोधके बलपर ही फूलती-फलती है, और अंग्रेजोंके सार्वजनिक जीवनमें तो यह बात एक व्यावहारिक सूत्र-सी बन गई है। आप निश्चित मानिए कि जब हम कौंसिलोंके लिए चुनाव लड़ेंगे तो राष्ट्रवादियोंके कौंसिलोंमें प्रवेश न पानेसे सरकारको हर्ष नहीं होगा। सरकार आज राष्ट्रवादियोंके कौंसिलोंमें प्रवेशके लिए बहुत उत्सुक है। मैं आपके सामने जो साक्ष्य पेश करने जा रहा हूँ, उसे आप उतना ही महत्त्व दीजिए जितने महत्त्वके लायक वह है। हो सकता है यह कोई ठीक साक्ष्य न हो लेकिन जैसा भी है, सामने है। मेरा यह निश्चित मत है कि लोकसेवी जन जो भी सेवा करना चाहते हैं, वह कौंसिलोंमें प्रवेश करनेके बजाय कौंसिलोंसे बाहर रहकर भी कर सकते हैं, और इस तरह वे जो सेवा करेंगे, वह उस सेवासे बहुत अधिक मूल्यवान होगी जो वे कौंसिलोंमें रहकर करेंगे। देशके एकमात्र लोकमान्य व्यक्ति स्वर्गीय तिलककी महान् शक्तिका रहस्य क्या था? क्या आप मानते हैं कि अगर वे कौंसिलोंमें जाते तो भारतके करोड़ों लोगोंके हृदयोंपर उन्होंने जैसा अद्वितीय प्रभाव डाला, वैसा प्रभाव डाल सकते?

लोगोंने आपके सामने उनके विचारके सम्बन्धमें साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं। लेकिन मुझे बड़ा दुःख है कि आपके सामने इस सम्बन्धमें कोई साक्ष्य नहीं पेश किया गया

  1. खिलाफत समितिका।