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भाषण : असहयोग प्रस्तावकी आलोचनाके उत्तरमें

कि इस कार्यक्रम के बारेमें वे क्या सोचते। लेकिन चूँकि मामला आपके सामने पेश कर दिया गया है, इसलिए मुझे इस कष्टकर कर्त्तव्यका पालन करना ही पड़ेगा कि मेरे पास भी जो साक्ष्य हैं, वे आपके सामने पेश कर दूँ। उनकी इच्छाके अनुसार उनके स्वर्गवाससे पन्द्रह दिन पहले मैं श्री शौकत अलीके साथ उनसे मिलने गया था। उस अवसरपर उन्होंने कहा था कि "व्यक्तिशः मैं तो मानता हूँ कि कौंसिलोंमें जाकर जहाँ जरूरी लगे वहाँ प्रतिरोध पैदा करना और जहाँ जरूरी लगे वहाँ सहयोग करना अच्छा रहेगा।" लेकिन जब श्री शौकत अलीने उनसे कहा कि "लेकिन तब दिल्लीमें मुसलमानोंको आपने जो वचन दिया था उसका क्या होगा?" दिल्लीमें उक्त अवसरपर मैं भी मौजूद था। श्री तिलकने श्री शौकत अलीकी बात सुनते ही कहा, "अरे, हाँ! अगर मुसलमान यह काम करते हैं तो!" वे अपने वाक्यपर बहुत जोर देकर बोले, उन्होंने सिर्फ कौंसिलोंके बहिष्कारकी ही चर्चा नहीं की। उन्होंने कहा "मैं आपको वचन देता हूँ कि उस हालतमें मेरी पार्टी आपके साथ होगी।" मैं नहीं चाहता कि आप इस साक्ष्यके महत्त्वको बहुत बढ़ा-चढ़ाकर आँकें। मैं जानता हूँ कि उनका नाम सुनते ही लोग मन्त्र-मुग्ध से रह जाते हैं; और हममें से बहुत लोग मानते हैं कि स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए वे जिस तरह अनवरत प्रयत्न करते रहे, वह बेजोड़ है और जो ऐसा मानते हैं उनके लिए उनके विचारका बहुत अधिक महत्त्व होगा ही। इन बातोंको देखते हुए, जिस विचारको उनका विचार बताकर पेश किया जायेगा उससे लोगोंका बहुत अधिक प्रभावित होना स्वाभाविक है।

इन कौंसिलोंका मतलब क्या है? मैं आपके और नेताओंके सामने भी एक सीधी-सी कसौटी रखता हूँ कि हम जिन दो अन्यायोंपर विचार करनेके लिए यहाँ एकत्र हुए हैं, वे हैं खिलाफत और पंजाबके सम्बन्धमें किये गये अन्याय। क्या आप यह मानते हैं कि कौंसिलोंमें जाकर बहस-मुबाहसा करके आप ब्रिटिश मन्त्रियोंपर कोई सीधा प्रभाव डाल सकते हैं और टर्कीके बारेमें हुई सन्धिकी शर्तोंमें परिवर्तन और पंजाबके मामलेपर पश्चात्ताप करनेके लिए उन्हें मजबूर कर सकते हैं? हमारे आदरणीय भाई और नेता पण्डित मालवीयजीने कहा है कि कांग्रेस उप-समितिने जो माँगें की हैं, वे सब अब शीघ्र ही स्वीकार कर ली जायेंगी, क्योंकि कुछ या अधिकांश अधिकारी जा चुके हैं या जल्द ही चले जायेंगे और अप्रैलमें वाइसराय भी चले जायेंगे। मैं नम्रतापूर्वक कहना चाहूँगा कि जब मैं वह रिपोर्ट लिखने बैठा तो उसमें कमसे-कम मेरा तो ऐसा कोई मंशा नहीं था। मैंने स्पष्ट कहा, और हमारे बीच जो बहस हुई उसके दौरान भी कहा, कि अधिकारियोंकी बरखास्तगी उनका कार्यकाल समाप्त होनेके कारण नहीं, बल्कि वे जिस अयोग्यता और बर्बरताके अपराधी पाये गये हैं, उसके कारण होनी चाहिए; और वाइसराय अगर अपने पदकी अवधिसे पूर्व त्यागपत्र नहीं देते तो उन्हें पेंशन लेनेपर मजबूर कर दिया जाये। वाइसरायके अपना कार्यकाल समाप्त हो जानेके कारण जानेसे मेरा उद्देश्य पूरा नहीं होता; और यही बात अधिकारियोंपर भी लागू होती है और अगर अधिकारियोंको जबरन पेंशन लेनेपर मजबूर भी कर दिया जाता है, लेकिन इन विशेष कारणोंके आधारपर नहीं, तो भी मेरा

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