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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उद्देश्य पूरा नहीं होगा। मैं चाहता हूँ कि सरकार पश्चात्ताप करके अपना हृदय शुद्ध करे, उसका हृदय परिवर्तन हो; लेकिन मुझे पश्चात्तापका, हृदय परिवर्तनका और मैत्री-भावका कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। अमृतसर कांग्रेसके समय मैंने सोचा था कि सरकारने हमारे प्रति मैत्रीका हाथ बढ़ाया है, और यही कारण था कि मैंने उस समय सरकारसे सहयोग करनेका सुझाव दिया था, लेकिन बादमें जब खिलाफत और पंजाब-सम्बन्धी अन्यायोंके बारेमें कोई राहत मिलती नहीं देखी तब यह दुःखद बात मेरी समझमें आई कि ब्रिटिश मन्त्रियों और भारत सरकारका मंशा भारतीय जनताके प्रति कभी भी सदाशयतापूर्ण नहीं रहा है। पश्चात्ताप करनेके बदले भारतको एक चुनौती दी गई है कि अगर आपको ब्रिटिश शासनके अधीन रहना है तो उसकी कीमत है आतंकवाद। इसलिए मैं इस आतंकवादी शासकदलसे कह देना चाहता हूँ कि आपकी अदालतें आपको मुबारक हों और अगर हम अपने बच्चोंको राष्ट्रीय स्कूलोंमें नहीं ला सकते तो आपने उनकी शिक्षाकी जो व्यवस्था की है, वह भी आपको मुबारक हो।

लेकिन निश्चय ही मैं इन स्कूलोंकी स्थापनाके लिए प्रतीक्षा करनेको तैयार नहीं हूँ। आवश्यकता आविष्कारकी जननी है। जब हमारे बच्चोंके लिए कोई स्कूल नहीं रह जायेगा तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हमारे सम्माननीय नेता पण्डित मालवीयजी स्वयं ही जगह-जगह जाकर राष्ट्रीय स्कूलोंके लिए चन्दा करेंगे। मैं भारतीयोंको मानसिक तौरपर भूखा नहीं रखना चाहता। मैं चाहता हूँ कि हर भारतीयको उचित शिक्षा दी जाये, अपने राष्ट्रकी गरिमाको पहचानने और यह समझनेकी शिक्षा दी जाये कि जो शिक्षा उसे दासताका पाठ पढ़ाती है, वैसी शिक्षा वह न ले।

बहुत-सी दूसरी बातें भी हैं, लेकिन मैं दो बातें फिरसे कहना चाहूँगा। हम जो सूक्ष्म भेद करते हैं, जनता उसे नहीं समझ पायेगी। वह तो यही समझेगी कि असहयोगका श्रीगणेश चोटीसे अर्थात् नई कौंसिलके बहिष्कारसे हो, जिसे गलतीसे प्रातिनिधिक संस्था कहा गया है; और अगर देशके सबसे अधिक समझदार और विचारशील व्यक्ति सरकारके साथ सहयोग करना बन्द कर देंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि सरकारकी आँखें खुल जायेंगी। शर्त यही है कि जो सहयोग करना बन्द करें वे चादर तानकर सो न जायें, बल्कि देशके एक छोरसे दूसरे छोरतक घूम-घूमकर हर शिकायतकी ओर सरकारका नहीं बल्कि जनताका ध्यान आकृष्ट करें। मेरा विश्वास है कि अगर मेरे कार्यक्रमको कार्यान्वित किया जाता है तो कांग्रेस वर्ष-प्रतिवर्ष विकसित होती चली जायेगी और उन शिकायतोंकी सार्वजनिक अभिव्यक्तिका असली मंच बन जायेगी। इस तरह सरकारके अधिकाधिक अन्याय जनताके सामने आते जायेंगे और इन अन्यायोंकी ठीक अनुभूति होनेपर इस महान् राष्ट्रका मानस प्रज्वलित हो उठेगा। अपने क्षोभको इस तरह केन्द्रीभूत और संयमित करके राष्ट्र उससे ऐसी शक्ति उत्पन्न कर सकेगा, जो अदम्य होगी।

कृपया इस बुनियादी और निश्चित तथ्यकी ओर ध्यान दीजिए कि मुस्लिम लीगने प्रस्ताव पास किया है कि व कौंसिलोंका पूरा बहिष्कार करेगी। क्या आप