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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पुरुषसे भिन्न मार्ग अपनाते हुए जब मैं आपसे यह कहता हूँ कि आप स्वयं अपनी विवेक-बुद्धिसे काम लीजिए और अपने मनमें मेरे व्यक्तित्वका तनिक भी खयाल न रखिए तो आप विश्वास करें कि मैं यह बात पूरी गम्भीरता और ईमानदारीके साथ कह रहा हूँ। अन्तमें मैं आपसे कहूँगा कि अगर आप यह प्रस्ताव पास करते हैं तो स्वयं ही सोच-समझकर वैसा कीजिए। अगर आप सोचते हों कि आपमें से प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रके नामपर राष्ट्रके नामके लिए और मुसलमानोंकी स्थायी मैत्री प्राप्त करनेके लिए यह थोड़ा-सा बलिदान कर सकता है तो आप यह प्रस्ताव स्वीकार करनेमें तनिक भी नहीं हिचकिचायेंगे; लेकिन अगर आप ये शर्तें पूरी नहीं कर सकते तो इसे अस्वीकार करनेमें भी कोई संकोच-विकोच नहीं दिखायेंगे। (हर्ष-ध्वनि)

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ११–९–१९२०
 

१४५. भेंट : प्रवासी भारतीयोंके प्रश्नपर

[९ सितम्बर, १९२०][१]

श्री गांधीने प्रवासी भारतीयोंके सवालोंपर भेंट देते हुए अपने विचार बहुत स्पष्ट शब्दोंमें व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि फीजीके गवर्नरका खरीता एकपक्षीय है और उसका उद्देश्य सरकारी अपराधोंकी लीपा-पोती करना है। उन्होंने कहा कि मजदूरोंकी स्थितिका अध्ययन करनेके लिए फोजीको कोई ऐसा आयोग भेजनेका विचार मुझे नापसन्द है, जिसे अशान्तिके कारणोंकी जाँच करनेका अधिकार न हो। फीजी प्रवासके किसी भी प्रयत्नका मैं विरोध करूँगा और फीजीके भारतीयोंको भारत वापस चले जानेकी सलाह देना चाहूँगा।

पूर्व आफ्रिकाके सम्बन्धमें श्री गांधीने कहा कि वहाँकी सरकारमें पूर्वग्रह है, वह गोरोंकी पक्षपाती और एशियाइयोंकी विरोधी है। पूर्व आफ्रिकामें भारतीयोंकी संख्या काफी है और वे प्रभावशाली भी हैं। उन्हें संगठित होना चाहिए। उनमें गोरे निवासियोंका प्रभाव रोकनेकी पर्याप्त सामर्थ्य है।

श्री गांधीने बताया कि मैं अब एक भी भारतीय मजदूरके ब्रिटिश गियाना जानके पक्षमें नहीं हूँ। यह पूछनेपर कि अब जब कि आपने असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया है, प्रवासी भारतीयोंके लिए आप किस तरह काम करनेकी बात सोचते हैं, उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राजनयिकोंमें मेरा विश्वास समाप्त हो गया है। जबतक हम पूर्ण उत्तरदायी सरकार नहीं प्राप्त कर लेते तबतक हम भारतीय जनताके सामने उसके प्रवासी भाइयोंकी शिकायतें पहलेसे भी अधिक उभारकर पेश करते रहेंगे, और

  1. देखिए "फीजीमें आतंक", २२-९-१९२०।