इस तरह देशमें क्षोभकी भावना इतनी तीव्र हो जायेगी कि उसके दबावको सरकार झेल नहीं पायेगी, और उसे इस सम्बन्धमें कोई कारगर कदम उठाना ही पड़ेगा, क्योंकि जनताके ध्यानमें जो भी अन्याय लाया जायेगा, उससे असहयोगकी गति तेज हो उठेगी और उसी हदतक——आज भारत सरकार और साम्राज्य सरकारमें अराजकता, अन्याय और शोषणकी जिन ताकतोंका बोलबाला है——वे ताकतें बिखर जायेंगी। हम सार्वजनिक सभाएँ बुलाकर विरोध करना जारी रखेंगे,[१]परन्तु यह सब अपने-आपको ऐसी ताकतसे लैस करनेके लिए होगा जो सरकारको यह कर्त्तव्य करनेके लिए बाधित करे।
यंग इंडिया, १५-९-१९२०
१४६. भाषण : अ॰ भा॰ कांग्रेस कमेटीको बैठकमें[२]
९ सितम्बर, १९२०
बैठककी कार्रवाई समाप्त करते हुए पण्डित मालवीयने कहा...कि यद्यपि मेरे मनमें श्री गांधीके प्रति अत्यन्त आदर और प्रेम है, फिर भी मुझे कर्त्तव्यवश बड़े दुःखके साथ कांग्रेसके असहयोग-सम्बन्धी प्रस्तावके बारेमें उनसे अपना पूर्ण मतभेद प्रकट करना पड़ रहा है...इसलिए मैंने निश्चय कर लिया है कि...मैं कांग्रेस द्वारा ग्रहण किये हुए मार्ग से भिन्न मार्ग अपनाऊँगा...कांग्रेसमें भी रहूँगा और साथ ही विधान परिषद्के लिए चुनाव भी लड़ेंगा।
श्री कस्तूरी रंगा आयंगरने कहा कि मुझे पण्डितजीका वक्तव्य सुनकर सान्त्वना मिली है, क्योंकि कुछ कांग्रेसी मित्रोंको, जो कौंसिलोंके उम्मीदवार हैं, इस सम्बन्धमें सन्देह था कि वे चुनाव लड़ते हुए कांग्रेसके सदस्य रह सकते हैं या नहीं।...पण्डितजीका आचरण उनके लिए उदाहरणस्वरूप होगा और इस प्रस्तावके सम्बन्धमें जिन अन्य लोगों की स्थिति ऐसी ही है, वे उनके उदाहरणका अनुकरण कर सकते हैं।...सदस्यगण इस मामलेमें श्री गांधीके विचार सुनना चाहेंगे।
श्री गांधीने कहा, जैसा कि मैं अखबारोंमें, विषय-समितिमें और अन्य स्थानोंमें भी बता चुका हूँ, आपसे फिर कहूँगा कि अल्पसंख्यक पक्षके सदस्योंको कांग्रेसका सदस्य बने रहने का पूरा अधिकार है और वे अपने विश्वास और अन्तरात्माके आवेशके अनुसार इस प्रस्तावके मुताबिक आचरण करने या न करनेको स्वतन्त्र हैं। इस मामलेमें श्री मालवीयजीने जो रुख अपनाया है, उससे मैं सहमत हूँ।