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कांग्रेस

रोधकी नीति अपनाई जाये। इसका मतलब था असली संघर्षको अगले आम चुनाव तकके लिए लगभग स्थगित कर देना। इसलिए विरोधियोंने मुख्यतः कौंसिलोंके बहिष्कारपर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया। और कांग्रेसने एक बहुत बड़े बहुमतसे तय किया है कि कौंसिलें छोड़ देनी चाहिए। आशा है जो लोग यह नहीं मानते कि कौंसिलोंका बहिष्कार करनेसे स्वराज्य जल्दी आनेकी जगह और दूर चला जायेगा, वे बढ़ाने के उद्देश्यको आगे बढ़ाने के लिए पूरी शक्तिसे काम करेंगे।

मतोंका विश्लेषण करनेसे पता चलता है कि देश असहयोग चाहता है। श्रीमती बेसेंट बहुत ही निर्भीक और खुले तौरपर लगातार इसका विरोध करती रही हैं, लेकिन उनके अनुगामी बहुत कम हैं। मैं अभी इस सवालके गुण-दोषोंका विवेचन नहीं करना चाहता। कौंसिलों, स्कूलों और न्यायालयोंके बहिष्कारके पक्षमें मेरी जो दलीलें हैं, वे देशके सामने हैं। मैंने कांग्रेसके मंचपर जो-कुछ सुना उसमें से कोई भी चीज मेरे इस विश्वासको हिला नहीं पाई है कि यह कदम जरूरी है और प्रभावकारी भी सिद्ध होगा; लेकिन मैं बहुमत और अल्पमतसे आदरपूर्वक दो शब्द कहना चाहूँगा।

बहुमतसे मेरा कहना है कि सबसे बड़ी विजयकी घड़ी सबसे अधिक विनय-शीलताकी भी घड़ी होती है। बहुमतने अपने सिर एक बहुत भारी जिम्मेदारी ली है। मेरे प्रस्तावके पक्षमें मत देनेवाला हर व्यक्ति, अगर वह अभिभावक है तो, निःसन्देह, ऐसे स्कूल-कालेजोंसे अपने बच्चे हटा लेनेके लिए बँधा हुआ है, जो किसी भी प्रकारसे सरकारी नियन्त्रणके अधीन हों। ऐसा हर मतदाता जो वकील है, जल्दीसे-जल्दी अपनी वकालत बन्द कर देने और आपसी विवादोंको निजी पंच-फैसलेके द्वारा निबटानेका प्रबन्ध करनेके लिए बँधा हुआ है। बहुमतके साथ मतदान करनेवाले कौंसिलोंके हर उम्मीदवारका यह धर्म है कि वह अपनी उम्मीदवारी वापस ले ले, और कौंसिलोंके प्रत्येक मतदाताका कर्त्तव्य है कि वह चुनावमें मतदान न करे। बहुमतके साथ मतदान करनेवाले हर प्रतिनिधिपर यह दायित्व है कि वह हाथसे कताई और बुनाईके कामको बढ़ावा दे और स्वयं हाथसे कते सुतसे हाथके ही बुने कपड़ेका उपयोग करे। चूँकि बहुमतमें से हर व्यक्तिने असहयोग के सम्बन्धमें हिंसा, आत्मबलिदान और अनुशासनके सिद्धान्तको स्वीकार किया है, इसलिए वह अल्पमतके साथ पूरे आदर और ईमानदारीसे व्यवहार करनेको बँधा हुआ है। हमें न तो कर्मसे और न वचनसे ही उन्हें किसी तरह चोट पहुँचानी चाहिए। प्रस्तावमें जो-कुछ कहा गया है, हमें उसपर पूरी तरह आचरण करके और प्रामाणिक तथा शुद्ध उपायों द्वारा उन्हें अपने रास्तेपर लानेकी कोशिश करनी चाहिए। जिन लोगोंने असहयोगके विरुद्ध मत दिया है वे या तो कमजोर थे या असहयोगके लिए तैयार नहीं थे। उदाहरणके लिए कुछ लोगोंको बच्चोंको स्कूलोंसे हटा लेनेके औचित्यमें सन्देह था। लेकिन जब वे देखेंगे कि स्कूल खाली किये जा रहे हैं, राष्ट्रीय स्कूल स्थापित किये जा रहे हैं, वकील लोग अपनी वकालत बन्द करके भी भूखों नहीं मर रहे हैं और कमसे-कम उत्तम राष्ट्रवादी लोग कौंसिलोंका त्याग कर रहे हैं तो वे शीघ्र ही इस कार्यक्रममें विश्वास करने लगेंगे, अपनी कमजोरीपर विजय पा लेंगे और इस कार्यक्रमको