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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपनानेके लिए स्वयं तैयार हो जायेंगे। इसलिए हमें सिर्फ इस कारण अल्पमतके प्रति अधैर्य दिखाने की जरूरत नहीं कि वह अभी हमारी बातोंसे सहमत नहीं है।

अल्पमतसे मैं यह कहूँगा कि उन लोगोंने एक खरी लड़ाईमें हार खाई है। इसलिए अगर यह बात उनकी अन्तरात्माके विरुद्ध न हो तो उन्हें असहयोगके कार्यक्रमपर पूरे जोरसे अमल करनेके लिए आगे आना चाहिए। जो लोग ऐसा मानते हैं कि बहुमतने बहुत बड़ी भूल की है, उन्हें निःसन्देह यह अधिकार है कि वे बहुमतसे अपनी बात स्वीकार करानेके लिए, उन्हें समझाने-बुझानेका काम शुरू करें। लेकिन अल्पमतवालोंमें से बहुत ज्यादा लोगोंने निजी पंचायती अदालतें और राष्ट्रीय स्कूल स्थापित करनेकी बात स्वीकार कर ली है। वे सिर्फ कौंसिलोंके बहिष्कारके सम्बन्धमें विचार करना स्थगित रखना चाहते थे। मैं उन्हें सुझाव दूँगा कि अब चूँकि बहुमत शीघ्रता करनेके पक्षमें निर्णय ले चुका है, इसलिए अल्पमतको उसका निर्णय स्वीकार करके इस कार्यक्रमको सफल बनानेमें सहायता देनी चाहिए।

मेरे प्रस्तावमें विदेशी मालके बहिष्कारको भी स्थान मिल गया। मुझे इसके लिए दुःख है। मैं यह नहीं बताऊँगा कि इसे मेरे प्रस्तावमें कैसे स्थान मिल गया। लेकिन चूँकि यह चीज मेरी अन्तरात्माके विरुद्ध नहीं थी और मैं यह दिखाना चाहता था कि किसी भी बातपर मैं कोई दुराग्रह नहीं रखता, इसीलिए मैंने यह प्रस्ताव पेश करनेका जिम्मा ले लिया, हालाँकि एक गलत स्वरके कारण इसकी लयमें कुछ गड़बड़ी पैदा हो गई थी। स्वदेशीमें विदेशी कपड़ोंका बहिष्कार शामिल है। दूसरे सभी विदेशी मालोंका बहिष्कार करना एक निरर्थक चीज है——भले ही उसका कारण सिर्फ यही हो कि यह चीज लगभग असम्भव है। लेकिन अगर इस परिशिष्टको प्रस्तावमें शामिल कर देनेसे हमें अपनी विलासिताकी आदतों और बेकारकी चीजोंके प्रति मोहसे छुटकारा पानेकी प्रेरणा मिलती है, तो इससे एक सदुद्देश्यकी सिद्धि होगी। निःसन्देह हमें यह अधिकार है, हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम गैर-जरूरी विदेशी चीजोंका, और ऐसी जरूरी विदेशी चीजोंका भी, जिन्हें हम अपने देशमें ही पैदा या तैयार कर सकते हैं, बहिष्कार करें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १५-९-१९२०