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१५०. भाषण : शान्तिनिकेतनमें

[१७ सितम्बर, १९२०]

भाइयो और बहनो,

आपके साथ थोड़े दिनके सहवासका जो आनन्दका मिला, वह तो अवर्णनीय है। मैं अपनी गिरी हुई तन्दुरुस्ती सुधारने यहाँ आया था और आपको यह जानकर आनन्द होगा कि मैं बिलकुल स्वस्थ होकर नहीं, तो भी पहलेसे काफी अच्छी सेहत लेकर जरूर जाऊँगा।

मुझे यह बुरा लग रहा है कि आपके साथ बँगलामें बात नहीं कर सकता। मेरे खयालसे किसी दिन आपके साथ बँगलामें बात करनेकी मेरी आशा चाहे पूरी न हो, तो भी मेरी यह आशा तो हरगिज अनुचित नहीं कि आप मेरी हिन्दुस्तानी समझ सकेंगे। जबतक आपके स्कूलमें हिन्दुस्तानी अनिवार्य विषय न हो जाये और आप उसे सीख न लें, तबतक आपकी शिक्षा सम्पूर्ण नहीं कही जा सकती। और एक बात मैं आपसे छिपाना नहीं चाहता कि मैं आपकी पाठशालाको, धीरे-धीरे ही सही, अत्यन्त उद्यमी मधुमक्षिकाओंसे भरा हुआ सुन्दर छत्ता बना हुआ देखनेकी आशा रखता हूँ। जबतक हमारे हृदयके साथ हमारे हाथोंका सुन्दर सहयोग न हो तबतक हमारा जीवन सच्चा जीवन नहीं बनेगा।

मुझे लगता है कि मैं अभीतक जिस काममें लगा रहा हूँ, उसका रहस्य छोटे बच्चोंके सामने भी रखा जा सकता है। फिर भी मैं जो कहनेवाला हूँ, वह केवल बालकोंके लिए नहीं है। मैंने अपने बच्चोंसे और दक्षिण आफ्रिकामें जिन्हें मैंने अपने ही बच्चे मान लिया था उनसे कभी कोई बात छिपा नहीं रखी।

मेरे लिए तो केवल एक धर्म है। वह है हिन्दू धर्म। मैं अपनेको हिन्दू कहता हूँ और उसमें गर्वका अनुभव करता हूँ, मगर मैं कोई कट्टर कर्मकाण्डी हिन्दू नहीं हूँ। मैं हिन्दू धर्मको जिस प्रकार समझता हूँ, तदनुसार वह अत्यन्त व्यापक है। उसमें अन्य सब धर्मोके लिए समभाव है, आदर है। इसलिए मैं अपने धर्मकी रक्षाके लिए जितने उत्साह और वेगसे प्रयत्न करूँगा, उतने ही उत्साह और वेगसे इस्लामकी रक्षा करते हुए आप मुझे देखते हैं। इस्लामका बचाव करनेमें मुझे बेहद प्रसन्नता होती है, क्योंकि मुझे लगता है कि ऐसा करके मैं अपने धर्मका बचाव करनेकी योग्यता प्राप्त कर रहा हूँ। पशुबलपर आधार रखनेवाले यूरोपके शक्तिशाली देशोंका खतरा जितना इस्लामपर मँडरा रहा है, उतना ही हिन्दू धर्मपर मँडरा रहा है। आज इस्लामकी बारी है, कल हिन्दू धर्मकी बारी आ सकती है। मेरे विचारसे हिन्दू धर्मपर खतरा तो तभीसे है जबसे ब्रिटिश हुकूमत इस मुल्कमें आई है। यह खतरा बहुत सूक्ष्म रूप में रहा है। मैंने देखा है कि हमारे विचारोंकी जड़ें पाश्चात्य प्रभावसे हिल उठी हैं। पाश्चात्य सभ्यता शैतानकी रचना है। अनेक वर्षोंसे हम [उसकी] अजीब मायाके भुलावेमें पड़े हुए हैं।