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भाषण : शान्तिनिकेतनमें


मेरी आँखें तो दरअसल पिछले साल ही खुलीं। मित्र-राष्ट्र युद्धमें शरीक हुए, तब उनका प्रगट उद्देश्य तो निर्बल राष्ट्रोंकी रक्षा करना था, परन्तु इस उद्देश्यकी आड़में उन्होंने अनेक छल-कपटके प्रयोग किये। फिर भी पिछली अमृतसर-कांग्रेसके समय सरकारके साथ सहयोग करनेके लिए मैंने देशसे अत्यन्त आग्रहपूर्वक और सच्चे दिलसे अनुरोध किया, क्योंकि मुझे उस वक्ततक भरोसा था कि ब्रिटिश प्रजा अपने पापोंके लिए पश्चात्ताप करेगी और ब्रिटिश [प्रधान] मन्त्री अपने वचनोंका पालन करेंगे। परन्तु पंजाबके काण्डको जिस तरह निपटाया गया, उसे देखकर और टर्कीकी सुलहकी शर्तें प्रकट होनेपर मेरा वह सारा विश्वास जाता रहा। मैं इस नतीजेपर पहुँचा कि मनुष्यके जीवनमें एक बार ऐसा अवसर अवश्य आता है, जब उसे खुदा या शैतान दोनोंमें से एकको चुनना पड़ता है। ब्रिटिश राजसत्ताके साथ इतने वर्षोंके सहयोगके परिणामस्वरूप मैंने यह देखा कि इन सत्ताधारियोंके साथ जिसका पाला पड़ता है, उसकी अवनति होती है। मुझे निश्चित प्रतीति हो गई है कि जबतक भारत अपना आदर्श समझ न जाये और हमारी सारी जनताको यह भान न हो जाये कि इंग्लैंडके लोगोंके साथ उनका नाता बराबरीका है तबतक ब्रिटिश सम्बन्ध जारी रहनेसे हमारी अवनति होती ही रहेगी। मैंने यह भी देखा है कि मुसलमानोंके साथ हमारी एकता बनाये रखना ब्रिटिश सम्बन्ध कायम रखनेकी अपेक्षा कई गुना अधिक कीमती है और यदि मुसलमानोंको हम उनके इस नाजुक समयमें मदद न दें, तो यह एकता टिकाये रखना मुश्किल है। इसके सिवा, यदि राष्ट्र-शरीरका चौथाई भाग इस तरह पंगु हो जाये तो जनतामें स्वदेशाभिमानका विकास होना अशक्य है।

इसलिए मैंने शौकत अलीके साथ दोस्ती की और उन्हें अपना भाई बनाया। उनके साथका अपना सम्पर्क मेरे लिए आनन्द और अभिमानकी बात है। कुछ बातोंमें मेरा उनका मतभेद है। मैं अहिंसा-धर्मको माननेवाला हूँ। वे हिंसा-धर्मको मानते मालूम होते हैं। वे यह मानते हैं कि कुछ परिस्थितियोंमें मनुष्य-मनुष्यका शत्रु हो सकता है, और दुश्मनोंको कत्ल किया जा सकता है। परन्तु फिर भी मैं उनके साथ काम कर रहा हूँ, तो उसका कारण यह है कि मैंने उनमें कुछ भव्य गुण देखे। वे वचनके पक्के हैं, अत्यन्त वफादार मित्र हैं, अत्यन्त शूरवीर हैं। उन्हें ईश्वरपर भारी श्रद्धा है। मुझे तुरन्त लगा कि इतने गुण तो धार्मिक मनुष्यमें ही हो सकते हैं। उनकी धर्म-निष्ठापर मुग्ध होकर ही मैंने उनका साथ किया और मैंने तो सदा ही विश्वास रखा है कि मेरे अहिंसाके सफल प्रयोगसे वे अहिंसाकी खूबी समझ सकेंगे।

अंग्रेजी शब्द 'इनोसेंस' में अहिंसा शब्दके जितने भाव आते हैं, उतने किसी अन्य शब्दमें नहीं आते। इसलिए अहिंसा और 'इनोसेंस' शब्द लगभग समानार्थी कहे जा सकते हैं। मेरा विश्वास है कि अहिंसाके मार्गपर चलनेवाले की सभी तरह कुशल है। अहिंसाके मार्गपर चलनेवालेको जो शस्त्र प्राप्य हैं, वे हिंसामार्गीको मिल सकनेवाले शस्त्रों से अधिक जोरदार हैं। हिंसाकी योजनाको मैं एक जंगली योजना कह सकता हूँ। उसमें पाशविकता अवश्य रहती है। अहिंसा-धर्मका सम्पूर्ण पालन करनेवाला ही पूरी मर्दानगी दिखा सकता है। एक आदमी भी पूरी तरह अहिंसामय जीवन बितानेको