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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तैयार हो, तो संसारको वशमें कर सकेगा। मैं नम्रतासे कहूँगा कि आज अपने इस जर्जर शरीरसे भी इतनी भारी लड़ाई छेड़नेकी मुझमें जो शक्ति है, तो वह मेरे अहिंसा-धर्मके पालनके कारण ही है। और हिन्दू अपना धर्म पहचानकर उसका पालन करें तो दुनियापर अपना असर जरूर डाल सकेंगे। जिस दिन भारत हिंसा-धर्मको प्रधानता देगा, उसी दिन मेरा जीवन शून्यरूप हो जायेगा।

परन्तु मेरा विश्वास अब भी अडिग है। और यदि आप हिन्दू माता-पिताकी सन्तान यह समझ लें कि हिन्दूके नाते विश्वके प्रति आपका कर्त्तव्य क्या है, तो आप कभी अन्यायी और दुर्जनके साथ सहयोग नहीं करेंगे। दुर्जनोंका संग न करनेके बारेमें तुलसीदासजीने जो अमर दोहे लिखे हैं उनके सौन्दर्यकी तुलना नहीं हो सकती। ब्रिटिश राज्य इस समय जिस प्रकारका है, उससे भारतको किसी शुभकी आशा रखना ऐसा ही है जैसा आकाशको बाहुपाशमें बाँधनेकी कोशिश करना। मैंने तो इस राज्यके साथ कई वर्ष घनिष्ठ सहयोग किया है और उस सहयोगके अन्तमें मुझे कुछ जबरदस्त अनुभव हुए हैं। उन अनुभवोंके परिणामस्वरूप ही मैंने यह भयंकर किन्तु उदात्त और तेजस्वी युद्ध छेड़ा है और आप सबको उसमें सम्मिलित करनेके लिए खप रहा हूँ। इस धर्म-मन्दिरमें मैं आपसे इतना ही माँगता हूँ कि आप यह प्रार्थना करें कि आत्मविकासके इस युद्धमें ईश्वर मुझे आरोग्य और सन्मति दे और दोष तथा कातरतासे सदा ही दूर रखे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २६-९-१९२०

 

१५१. शुद्ध स्वदेशी

दिन-प्रतिदिन मुझे विश्वास होता जाता है कि स्वदेशीका अर्थ एक ही हो सकता है। मैंने स्वदेशी-भण्डारोंका उद्घाटन किया है; स्वदेशी-व्रतोंकी रचना की है; इससे भले ही थोड़ा-बहुत लाभ हुआ हो, स्वदेशी-भावनाको प्रोत्साहन मिला हो लेकिन मैं मानता हूँ कि इससे हिन्दुस्तानको कुछ आर्थिक प्राप्ति नहीं हुई। स्वदेशीकी प्रवृत्तिको उतना ही लाभ हुआ है जितना कि हाथसे कते-बुने सूतके कपड़े प्रचारका हुआ है।

मिलोंको बढ़ावा देनेकी जरूरत नहीं है। मिलें अपना सब माल बेच सकती हैं। मिलें अपनी आवश्यकताका सूत कदाचित् ही कात सकती हैं। ऐसी स्थितिमें मिलोंके सूतसे हाथसे कपड़ा बुननेमें देशको लाभ नहीं है बल्कि उससे गरीबोंपर बोझ बढ़ता है। इससे एक नुकसान तो यह है कि इस तरह सूत तथा कपड़ेका दाम बढ़ता है और दूसरा नुकसान यह है कि गरीब लोग, जो फिलहाल हमारी मिलोंमें तैयार हुए कपड़ेको पहनकर सन्तोष मानते हैं, विदेशी कपड़ा पहनने लगेंगे। यह चीज अधिक नुकसानदेह है क्योंकि यदि एक बार गरीबोंको विदेशी कपड़े पहनने की आदत पड़