गई तो बादमें स्वदेशी कपड़े पहननेकी आदत डालनेमें मुश्किल पड़ेगी। फलतः मैं यहाँ स्वदेशी-आन्दोलनके कुछ नियमों तथा तत्त्वोंको प्रस्तुत कर रहा हूँ :
१. हाथसे कते-जुने कपड़ेको ही इस्तेमाल करें।
२. हाथसे सूत कतवाने और उसे बुनवानेका जबरदस्त प्रयत्न करें।
३. सूत कातने और हथबुनाईके यन्त्रोंमें जितना बन सके उतना सुधार करवायें।
४. इस समय हाथसे कहाँ-कहाँ कताई-बुनाई होती है, इसकी खोजबीन करें।
५. उससे तैयार किया गया कपड़ा ही खादी है; उसका प्रचार करें।
६. ऐसे उपायोंकी योजना करें जिससे लोगोंमें सादगीकी रुचि बढ़े।
७. और हाथसे कते सुत तथा उससे बुने कपड़ोंको बेचनेके लिए भण्डार खोलें।
अपनी यात्रा के दौरान मैंने देखा है कि अनेक स्थानोंपर शान्तिके साथ दृढ़तापूर्वक इस तरह स्वदेशीका प्रचार होता रहता है। मद्रासके एक गाँवमें भारत सेवक समाजवाले श्री हनुमन्तराव मित्रोंकी मददसे बहुत काम कर रहे हैं। एक विधवा महिला पैसे और परिश्रमसे उनकी मदद कर रही है; उनकी पत्नी भी इस प्रयासमें उनके साथ हैं। मछलीपट्टम में जो कलाशाला है वहाँ भी वह काम चालू है। मैंने कुछ सूत देखा, और वह मुझे गुजरातमें तैयार होनेवाले सूतकी अपेक्षा बहुत अधिक बारीक लगा; बुनाई भी सुन्दर जान पड़ी। बारीक सूत तो धनिक स्त्रियोंने शौकसे काता था। उसकी बनी हुई धोतियाँ भी मैंने देखीं। स्वदेशी रंगका भी ठीक उपयोग किया जाता है। इस तरह देशके एक कोनेमें बिना किसी पूँजीके यह उपक्रम चल रहा है।
खादी भण्डार प्रारम्भ करनेमें कदाचित् पाँच सौ रुपयेसे काम चल जाता है। इसके लिए एक ही व्यक्ति, यदि वह परिश्रमी हो तो, पर्याप्त होता है। वह स्वयं जितना माल लेकर रख सके उसीके अनुसार छोटी दुकान रखे। जबतक दुकानपर आकर खरीदनेवालोंकी संख्या काफी न हो जाये तबतक वह फेरी लगाकर खादी बेचे। इस तरह थोड़ी-सी पूँजीसे बहुतसे व्यक्तियोंका निर्वाह हो सकता है और शुद्ध स्वदेशीका प्रचार हो सकता है। लेकिन इस लेखका मुख्य उद्देश्य तो मिलका कपड़ा पहननेका व्रत लेनेवालों तथा उक्त कपड़ेकी दुकान खोलनेवाले व्यक्तियोंको चेतावनी देना है। मिलके कपड़े की वर्तमान दुकानोंको बन्द करना आवश्यक नहीं है; आवश्यकता इस बातकी है कि वे धीरे-धीरे अपनी दुकानमें उसकी जगह खादी रखते चले जायें। यदि वे अपनी दुकानमें कपड़ेके अतिरिक्त अन्य स्वदेशी वस्तुएँ रखनेमें भी पूँजी लगाना चाहते हों तो लगायें। लेकिन यह बात स्पष्ट है कि मिलोंका अथवा मिलोंके सूतसे हाथका बुना कपड़ा इकट्ठा करनेसे देशको कोई लाभ नहीं होगा।
नवजीवन, १९-९-१९२०