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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३२३

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कुछ उदाहरण

कभी स्वराज्य नहीं मिलेगा; लेकिन तब हमें अंग्रेजोंको, वे जो-कुछ कर रहे हैं, उसके लिए दोष देनेका कोई अधिकार नहीं होगा। हमारी मुक्ति और उसका समय पूरी तरह हमपर निर्भर करता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-९-१९२०
 

१५६. कुछ उदाहरण

अपने "लोकशाही बनाम भीड़शाही"[]शीर्षक लेखमें मैंने अपना आशय समझानेके लिए अपने अनुभवसे कुछ दृष्टान्त देनेका वादा किया था। पिछले सप्ताह कांग्रेसकी लम्बी कार्यवाहीमें व्यस्त रहनेके कारण वे दृष्टान्त नहीं दे पाया। अब दे रहा हूँ। जब हम मद्रास पहुँचे, उस समय एक विशाल भीड़ स्टेशनपर हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। हमारा डिब्बा काट दिया गया और सौभाग्यसे वह एक आरक्षित प्लेटफार्मके सामने लगा दिया गया। यदि हमें अन्य यात्रियोंके साथ उतरना पड़ता तो क्या होता, यह कल्पना करनेकी ही चीज है। परन्तु आरक्षित प्लेटफार्मपर भी हम कुछ समयतक उतर नहीं सके। स्वयंसेवक रास्तेमें खड़े थे। स्वयं भीड़में यत्र-तत्र खड़े होकर उसे पीछे रखनेके बजाय, जैसा उनका खयाल था, वे हमारा सम्मान करनेके लिए एक स्थानपर एकत्र हो गये थे। परिणाम यह हुआ कि भीड़का सारा दबाव जहाँ वे स्वयंसेवक और हम खड़े थे, उस ओर ही हो गया। और "घेरा बना लो"——यह तो एक आम आदेश-वाक्य हो गया है। यह घेरा बनानेका दृश्य बड़ा अपमानजनक लगता है, फिर भी यह एक ऐसा रिवाज बन गया है कि जब स्वयंसेवकोंके अलावा और कोई नहीं होता तब भी जिस नेताका "सम्मान" करना होता है, उसके चारों ओर "घेरा" बना लिया जाता है।

हाँ, तो मैं कह रहा था कि भीड़ बहुत अधिक थी, वह इतना ज्यादा शोर मचा रही थी कि स्वयंसेवकों द्वारा दिये गये निर्देश बिलकुल सुनाई नहीं देते थे। सर्वत्र अव्यवस्था ही अव्यवस्था थी। मेरे पंजोंके कुचलकर भुरता हो जानेका खतरा बराबर बना रहा। जो स्वयंसेवक मेरी रक्षाकी कोशिश कर रहे थे, उन्हींके धक्कोंसे कई बार मैं गिरते-गिरतको हो गया। वे बहुत सावधानीसे मेरा बचाव कर रहे थे और दीर्घकाय मौलाना शौकत अली उनकी मदद कर रहे थे। अगर यह-सब न होता तो मेरी स्थिति और भी बुरी होती। वातावरण दम घोटनेवाला था। इस तरह धक्कम-धक्केके बीचसे गुजरते हुए मोटर गाड़ीतक पहुँचनेमें हमें पौन घंटा लग गया, जब कि साधारण तौरपर स्टेशनसे पोर्चतक चलकर पहुँचनेमें तीन मिनट भी नहीं लगने चाहिए थे। गाड़ीके पास पहुँचकर भी उसमें घुस पाना आसान काम नहीं था। मुझे ढकेलकर ही गाड़ीके भीतर पहुँचाया गया, हालाँकि इस काममें उन्होंने अधिकसे-

  1. ८ सितम्बर, १९२० के लेखमें।