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स्वदेशी भण्डार

इसलिए वे लालटेनें ले आये। आखिरकार मैंने सोचा कि मैं ही कोशिश करूँ। मैं उठकर दरवाजेके पास गया। मेरा दरवाजेके पास जाना था कि लोग प्रचण्ड हर्षनाद कर उठे। इस आवाजसे मेरा तो सिर भन्ना गया। इतना थका हुआ था मैं। अन्तमें मेरी सारी अनुनय-विनय व्यर्थ गई। वे एक क्षणको रुकते और फिर हर्षनाद कर उठते। मैंने खिड़कियाँ बन्द कर लीं। परन्तु भीड़ विचलित होनेवाली नहीं थी। उसने बाहरसे खिड़कियाँ खोलनेका प्रयत्न किया। वह तो हम दोनोंको देखकर ही माननेवाली थी। यह कशमकश इसी तरह चलती रही, और आखिर मेरा लड़का बीचमें पड़ा। उसने उनके सामने जोरदार तकरीर की, अन्य यात्रियोंकी सुविधाके नामपर उसने आरजू-मिन्नत की। उसका कुछ असर हुआ और शोर कुछ कम हो गया। फिर भी डिब्बेमें झाँकना अन्तिम क्षणतक जारी रहा। लोग यह सब अच्छे इरादेसे ही कर रहे थे, यह उनके असीम स्नेहका प्रदर्शन था, फिर भी कितना निर्मम, कितना असंगत। यह एक विचारहीन भीड़ थी। उसमें कोई भी प्रभावशाली, समझदार आदमी नहीं था और इसलिए किसीने किसीकी नहीं सुनी।

सच्ची प्रगति करनेके लिए हमें इन जन-समुदायोंको प्रशिक्षित करना होगा। इनका दिल सोनेका होता है, ये देशके लिए सोचते हैं, ये आपसे कुछ सीखनेको उत्सुक हैं, आपका नेतृत्व चाहते हैं। आवश्यकता सिर्फ थोड़ेसे समझदार और ईमानदार स्थानीय कार्यकर्त्ताओंकी है। अगर ऐसे कार्यकर्त्ता मिल जायें तो सारा राष्ट्र इस तरह संगठित किया जा सकता है कि वह समझदारीसे काम कर सके और भीड़शाहीमें से लोकशाही विकसित की जा सकती है। यह विकास वास्तवमें सफल राष्ट्रीय असहयोगका प्रथम चरण है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-९-१९२०

 

१५७. स्वदेशी भण्डार

पहलेके एक अंकमें[१]मैंने यह दिखानेकी कोशिश की थी कि किस तरह मिलके उत्पादनोंकी बिक्रीके लिए खोले गये भण्डारोंसे स्वदेशीको किसी भी रूपमें बढ़ावा नहीं मिलता, वरन् इसके विपरीत इससे कपड़ेकी कीमत बढ़ जाती है। मैं इस लेखमें यह दिखाना चाहता हूँ कि किस तरह छोटी पूँजीसे सच्ची स्वदेशीको आगे बढ़ाया जा सकता है और सादा जीवन बिताने लायक कमाई भी की जा सकती है।

मान लीजिए कि एक कुटुम्ब है, जिसमें पति, पत्नी और दो बच्चे हैं——बच्चोंमें से एककी उम्र दस वर्ष है और दूसरेकी पाँच वर्ष। यदि उनके पास ५०० रुपयेकी पूँजी है तो वे छोटे पैमानेपर एक खद्दर भण्डार चला सकते हैं। उदाहरणके तौरपर वे २०,००० की आबादीवाले छोटे-से स्थानमें १० रुपये महीने किरायेपर एक दुकान ले

  1. देखिए "स्वदेशी", ८-९-१९२० ।