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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अच्छी है। भारतमें नितान्त अज्ञानी व्यक्तिके लिए भी यह एक धार्मिक विश्वासकी बात है कि शरीरके साथ आत्माका नाश नहीं होता और वह कर्मके अनुसार पुनः अपने लिए अच्छा या बुरा चोला प्राप्त कर लेती है; इसलिए मृत्युकी इतनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए जितनी कि लोग करते जान पड़ते हैं। श्री नायक अपना यह कर्त्तव्य पूरा करनेके लिए और भी अच्छा चोला धारण करके पुनः धरतीपर आयेंगे। और इस विश्वासको हृदयमें रखते हुए हमें उनकी मृत्युपर शोक नहीं करना चाहिए बल्कि आनन्द मनाना चाहिए कि उन्हें अपने मानव-भाइयोंका संकट दूर करनेका कर्त्तव्य पूरा करते हुए मरनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २२-९-१९२०

 

१५९. फीजीमें आतंक[१]

मैंने जो उत्तर दिया, वह उत्तर देते समय मेरे ध्यानमें तीनों विकल्प थे। हमें आशा रखनी चाहिए कि भावी प्रवासकी सम्भावनाओंकी जाँच करनेवाले इस प्रस्तावित आयोगका सदस्य बनकर कोई भी स्वाभिमानी भारतीय वहाँ नहीं जायेगा। अगर हम वहाँके भारतीयोंकी शिकायतोंकी जाँचके लिए अपनी ओरसे कोई स्वतन्त्र आयोग भेजें तो उसे काम नहीं करने दिया जायेगा। फीजीमें स्वयं कुछ गोरोंने श्री एन्ड्र्यूजके साथ कैसा व्यवहार किया था? हम पुस्तिकाएँ छपवा सकते हैं, और भारतमें उन्हें प्रचारित कर सकते हैं; लेकिन उससे उन लोगोंकी वर्तमान समस्या तो हल नहीं हो जायेगी जो फीजीमें हैं, और जो जेलमें हैं या जेल भेजे जा रहे हैं। यहाँ मामला तो साफ-साफ यह है कि फीजीके वर्तमान भारतीय बाशिन्दोंको आतंकित किया जा रहा है ताकि वे गोरे शोषकोंकी गुलामी स्वीकार कर लें। पत्रलेखक महाशय यह भूल

  1. यह यंग इंडियाके सम्पादकके नाम लिखे एक पत्रके उत्तरमें लिखा गया था। पत्रके सम्बन्धित अंश इस प्रकार थे : "आपने कलकत्तेमें ९ सितम्बरको मुझे जो भेंट देनेकी कृपा की थी, उसमें कहा था कि अगर फौजीके भारतीयोंको वहाँ अपनी सारी जायदाद बेच देनी पड़े तब भी आप उन्हें भारत लौट आनेकी ही सलाह देंगे...वहाँ उन्होंने अपने घर बनवाये हैं। हजारोंका जन्म ही फीजीमें हुआ है...निश्चय ही आप उन सभीसे भारत लौट जानेको नहीं कहेंगे।...हम उन ५० हजार भारतीयोंके लिए कौन-सी व्यवस्था करेंगे...मैं आपसे तीन बातोंपर विचार करनेका अनुरोध करूँगा: (१) हमें यहाँकी जनताके सामने यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि जब भारत सरकारसे फीजीकी दुःखद घटनाओंकी स्वतन्त्र जाँच करवानेको कहा गया तब तो उसने इनकार कर दिया, और अब वह फौजीमें मजदूरोंकी स्थितिका अध्ययन करनेके लिए वहाँ एक आयोग भेजने जा रही है। यह जलेपर नमक छिड़कने-जैसा है। किसी भी स्वदेशाभिमानी भारतीयको भारत सरकारके इस आयोगकी सदस्यता स्वीकार नहीं करनी चाहिए। (२) हमें फीजीके हालके उपद्रवोंके कारणों और परिणामोंकी जाँच करनेके लिए अपनी ओरसे एक आयोग भेजना चाहिए। (३) हमें फीजीकी दुःखद घटनाओंके बारेमें भारतीय भाषाओंमें, विशेषकर हिन्दी और तमिलमें कुछ पर्चे छपवाकर देशमें बाँटने चाहिए।"