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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३३२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अपने अवकाशके समयका एक हिस्सा-भर सार्वजनिक कार्योंमें लगाते हैं, तो यह मानते हुए कि जन-आन्दोलनोंका नेतृत्व वकीलोंके ही हाथोंमें रहना है, स्वराज-प्राप्ति अनिश्चित कालके लिए टल जायेगी। इसलिए निकट भविष्यमें अपने लक्ष्यतक पहुँचनेके लिए यह बिलकुल जरूरी है कि वकील अपनी वकालत छोड़ दें। जो वकील ऐसा करते हैं, लेकिन साथ ही जिन्हें अपनी जीविकाके लिए सहायताकी भी जरूरत है, राष्ट्रको उन्हें ऐसी सहायता देनी चाहिए। यह सहायता राष्ट्रीय स्कूलों या आपसी झगड़ोंके निपटारेमें या प्रचार-कार्यमें उनकी सेवाका उपयोग करके दी जा सकती है। जैसे शिष्टमण्डलका सुझाव खिताबयाफ्ता आदि लोगोंके सम्बन्धमें दिया गया है, वैसे ही शिष्टमण्डलोंको वकीलोंसे मिलकर उनकी इच्छाएँ जाननेकी कोशिश करनी चाहिए। प्रत्येक शहर या जिलेमें वकीलोंकी सूची तैयार की जानी चाहिए। इस सूचीमें शामिल जो वकील वकालत छोड़ दें, उनके नामपर निशान लगाकर सूचीको प्रकाशनार्थं प्रान्तीय सदर मुकामको भेज देना चाहिए।

वकीलोंको चाहिए कि वे सम्बन्धित पक्षोंको न केवल अपने नये मुकदमे पंच फैसले के सुपुर्द करनेको प्रोत्साहित करें वरन् ब्रिटिश अदालतोंमें उनके जो मुकदमे पहलेसे ही चल रहे हों, उन्हें भी वापस लेकर राष्ट्रीय पंचायती अदालतोंको सौंपनेकी प्रेरणा दें। जिला समितिको पंचायती अदालतोंकी अध्यक्षता करनेवाले वकीलों और जनताके विश्वासपात्र अन्य प्रमुख नागरिकोंकी सूची बनानी चाहिए। चूँकि अभी पंचायती अदालतोंके आदेशोंपर अमल करानेवाला कोई तन्त्र नहीं है, इसलिए जो पक्ष ऐसे आदेशों का पालन न करें, उनका किसी प्रकारका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए।

ऐसा बताया गया है कि कुछ वकील, जो अपनी वकालत क्षण-भरकी भी देर किये बिना छोड़ देनेको तैयार और उत्सुक हैं, इस कारण अपनी वकालत पूरी तरह बन्द नहीं कर पा रहे हैं क्यों कि पहलेसे ही कुछ मामले उनके हाथोंमें हैं, और इन्हें वे ईमानदारीके नाते अपने मुवक्किलोंकी अनुमति लिये बिना छोड़ नहीं सकते। इन मामलोंमें वकीलोंसे अपेक्षा की जायेगी कि वे केवल ऐसी ही जिम्मेदारियोंकी चिन्ता करेंगे; और जल्दीसे-जल्दी अपनी वकालत पूरी तरह बन्द कर देनेकी कोशिश करेंगे।

कौंसिलें

कौंसिलोंका बहिष्कार सबसे महत्त्वपूर्ण चीज है और इसपर सबसे अधिक शक्ति लगानेकी भी जरूरत है। यदि सबसे अच्छे कार्यकर्त्ता कौंसिलोंकी सदस्यताके लिए चुनाव लड़ें तो आम लोग असहयोगका अर्थ नहीं समझ सकेंगे। सुधार अधिनियम ऐसा नहीं बनाया गया है कि तुरन्त स्वराज्य दे दिया जाये। जब कभी स्वराज्य मिलेगा तो वह इस कारणसे नहीं कि अंग्रेज हमें स्वेच्छासे वह चीज दे देंगे बल्कि इस कारणसे मिलेगा कि वे हमारी माँग अस्वीकार नहीं कर सकेंगे। और हम मानते हैं कि कोई हमारी माँग अस्वीकार न कर सके, ऐसी अदम्य शक्ति हमें नई कौंसिलोंके भवनोंमें प्राप्त नहीं हो सकती। यह शक्ति तो हमें मतदाताओंको, और