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कांग्रेस-संगठनोंके लिए हिदायतोंके मसविदेपर रिपोर्ट

जो मतदाता नहीं हैं उन्हें भी, निरन्तर शिक्षा देते रहनेसे ही मिल सकती है। जो उम्मीदवार सामने आ चुके हैं शिष्टमण्डलोंको उनसे मिलना चाहिए और अपनी उम्मीदवारी वापस ले लेनेकी प्रार्थना करनी चाहिए। निर्वाचकोंसे मिलकर उनसे निम्नलिखित पत्रपर हस्ताक्षर लेने चाहिए:

राष्ट्रीय कांग्रेसके विशेष अधिवेशन और अखिल भारतीय मुस्लिम लीगके प्रस्तावको ध्यानमें रखते हुए हम, नई कौंसिलोंके चुनावके लिए निश्चित...के...निर्वाचन-क्षेत्रके मतदाता, लिखित रूपमें अपनी यह इच्छा व्यक्त करते हैं कि हम नहीं चाहते कि प्रान्तीय विधान परिषद् (या विधान सभा अथवा केन्द्रीय विधान परिषद्) में कोई भी हमारा प्रतिनिधित्व करे और इसके द्वारा हम सभी उम्मीदवारोंको सूचित कर देते हैं कि अगर वे हमारी इस इच्छाके बावजूद चुनाव लड़ते हैं तो वे हमारे प्रतिनिधि नहीं होंगे। हम नई कौंसिलोंमें तबतक अपना कोई प्रतिनिधित्व नहीं चाहते जबतक कि खिलाफत और पंजाबके मामलोंमें न्याय नहीं किया जाता और भारतको स्वराज्य नहीं दे दिया जाता।

अगर किसी भी क्षेत्रमें आधेसे अधिक मतदाताओंको इस प्रपत्रपर दस्तखत करनेको राजी कर लिया जाये तो हमारा खयाल है कि कोई भी उम्मीदवार इतनी जोरदार घोषणाके बाद चुनावमें खड़ा नहीं रह सकेगा। जिन उम्मीदवारोंने अपने नाम वापस ले लिये हों और जो इसके लिए तैयार न हों, उन दोनोंके नामोंकी सूचियाँ लेकर मतदाताओंको पहले पक्ष-विपक्षकी बातें समझानी चाहिए और तब उनसे उपर्युक्त प्रपत्रपर हस्ताक्षर करनेको कहना चाहिए। मतदाताओंकी सुविधाके लिए देशी भाषामें प्रपत्रका अनुवाद करा लेना भी जरूरी है।

मैसोपोटामियाके लिए मजदूरों आदिकी भरती

जो राष्ट्र खिलाफत और पंजाबके निर्मम अन्यायको महसूस करता हो उस राष्ट्रके लोग कमसे-कम इतना तो कर ही सकते हैं कि मैसोपोटामियामें तथा युद्ध छिड़नेके समय जो अन्य प्रदेश टर्की साम्राज्यके हिस्से थे, उनमें सरकारकी सेवा करनेके लिए सिपाहियों, क्लर्कों और मजदूरोंके रूपमें भरती होनेसे इनकार कर दें। जिन-जिन लोगोंके ऐसी सेवाके लिए भरती होनेकी सम्भावना हो उनके बीच कार्य- कर्त्ताओंको प्रचार करना चाहिए, जिसका तरीका यह हो कि वे उनके सामने सच्ची स्थिति स्पष्ट कर दें और फिर उन्हें स्वयं ही फैसला करने दें।

विदेशी वस्तुओंका बहिष्कार

दुर्भाग्यसे यह खण्ड कुछ गलतफहमीके कारण जोड़ दिया गया है।[१]प्रत्येक असहयोगीका यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी जरूरतें सीमित रखे और जिस ऐशो-आरामके लिए उसे विदेशी मालका मोहताज होना पड़े, ऐसे सभी ऐशो-आराम छोड़ दे।

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  1. यह वाक्य बॉम्बे क्रॉनिकल, २८-९-१९२० से लिया गया है।