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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वदेशी

प्रस्तावके इस अंशमें वह सब कुछ है जो विदेशी वस्त्रके बहिष्कारके लिए तत्काल किया जा सकता है। विदेशी वस्त्रने, वह चाहे लंकाशायरका हो या जापानका या फ्रांसका, करोड़ोंके मुँहसे रोटी छीन ली है और घरमें कताईकी उस प्राचीन कलाको लगभग समाप्त ही कर दिया है, जो करोड़ों कृषकोंकी कमाईमें योग देनेका एक साधन थी और अकालकी स्थितिमें एक तरहसे बीमेका काम करती थी। इसने हजारों बुनकरोंका सम्मानजनक और काफी आमदनीवाला धन्धा छीन लिया है। हमारी मिलें हमारी जरूरतें पूरी करनेकी दृष्टिसे काफी उत्पादन नहीं करतीं। जो लोग विदेशी कपड़ा पहननेके आदी हैं वे यदि मिलोंपर और बोझ डालेंगे तो उसका एक ही परिणाम होगा कि मूल्यमें वृद्धि होगी और इस तरह गरीब लोग आज जो कपड़ा खरीद पाते हैं वह भी नहीं खरीद पायेंगे। इतनेपर भी इससे स्वदेशीको किसी प्रकारका उत्तेजन नहीं मिलेगा। इसलिए आज हाथकी कताई और हाथकी बुनाई राष्ट्रीय आवश्यकता है और इसे एक खास हदतक सर्वप्रिय बनानेके लिए अनुशासन, त्याग और संगठन-क्षमताकी जरूरत होगी, और ये सभी गुण तो स्वराज पानेके लिए भी जरूरी हैं ही। हाथसे कताई हो, हाथसे बुनाई हो और इस तरह तैयार किये गये कपड़ेके वितरणके रूपमें हम स्वदेशीके पुनरुत्थानको बहुत महत्त्व देते हैं। इस कामके लिए हजारों कार्यकर्त्ताओंको विशेष प्रशिक्षण देनेकी जरूरत है। उच्च-वर्गकी महिलाओंको हाथसे कताई शुरू करने और सिर्फ वही कपड़ा, जो हाथसे कते सूतसे बुता हो, इस्तेमाल करनेके लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। गली-गलीमें इसके प्रशिक्षणके लिए शालाएँ खोलनी चाहिए। नमूनेको सामने रखकर कोई भी साधारण बढ़ई चरखा बना सकता है। जो लोग यह काम अपने हाथोंमें लेना चाहें उन्हें व्यवस्थापक, सत्याग्रहाश्रम, साबरमती (अहमदाबादके पास) के पतेपर पत्र लिखना चाहिए।

स्वराज्य-कोष

कांग्रेसके प्रस्तावको कार्यान्वित करनेके लिए एक राष्ट्रीय कोषकी स्थापना करना बहुत ही जरूरी है। प्रचार-कार्यके लिए, स्वदेशीको उत्तेजन देनेके लिए, राष्ट्रीय स्कूलोंकी स्थापनाके लिए और जिन वकीलोंने अपनी वकालत छोड़ दी हो और अपना भरण-पोषण करनेमें असमर्थ हों उनको मदद देनेके लिए एक कोषकी जरूरत होगी। इसलिए प्रान्तीय संगठनोंको जिला संगठनोंकी सहायतासे कोष-संग्रह करनेका हर प्रयत्न करना चाहिए और आय-व्ययकी मासिक रिपोर्ट पेश करनी चाहिए।

स्वयंसेवक दल

लोगोंको अनुशासन सिखाने और व्यवस्था कायम रखनेके लिए प्रान्त, जिला और नगर, तीनों स्तरोंके संगठनोंको स्वयंसेवक-दल तैयार करने चाहिए।

अन्तमें हम सलाह देंगे कि जहाँ कार्यकर्त्ता पर्याप्त संख्यामें हों, वहाँ एक-एक दलको एक-एक अलग काममें विशिष्टता प्राप्त करनी चाहिए ताकि वह उस विशेष