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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह कहना चाहूँगा कि यदि सरकारके अधीन रहनेवाले सभी स्कूल विद्यार्थियोंसे खाली हो जायें तो आप एक महीनेके अन्दर-अन्दर हिन्दुस्तानका चेहरा बदला हुआ पायेंगे। यदि सब विद्यार्थी कल ही से एकाएक स्कूलोंमें जाना छोड़ दें तो इस बातका जनता और राज्याधिकारियोंपर जितना असर होगा उतना किसी और बातका नहीं होगा। जितना असर उनके स्कूल छोड़नेसे होगा उतना असर तो वकीलोंके वकालत छोड़नेपर भी न होगा। जब विद्यार्थी सरकारी स्कूलोंसे निकल जायेंगे तब सरकारको ऐसा लगेगा कि उनका तिनसा वाटर वर्क्स[१]——दूर क्यों जायें, दूधेश्वर वाटर वर्क्स[२]——बन्द हो गया है। विद्यार्थियोंपर ही हिन्दुस्तानकी स्वतन्त्रता निर्भर करती है, क्योंकि उनकी रगोंमें नया खून दौड़ता है। वकील अपने व्यवसायके कारण सयाने माने जाते हैं। लेकिन विद्यार्थियोंका जीवन [दुनियादारीसे] अछूता होता है। वकीलोंके सम्मुख अपना [भरण-पोषण करनेका] स्वार्थ होता है इसलिए उनका धन्धा छोड़ना कठिन है। लेकिन विद्यार्थियोंके सामने जीविकाका स्वार्थ नहीं रहता, इस कारण अगर उनसे सिर्फ सरकारी स्कूलोंको छोड़नेके लिए कहा जाये तो यह कार्य उनके लिए सहल है।

प्रश्न हो सकता है कि विद्यार्थी ऐसा क्यों करें, किसलिए वे स्कूलोंका परित्याग करें? मेरे इस आन्दोलनके विरुद्ध हमारे महान्, धर्म-धुरन्धर, निरन्तर जन-सेवामें निरत पण्डित मदनमोहन मालवीयजी, हिन्दुस्तानमें गहन विचार-शक्तिके धनी श्री शास्त्रियर और हमारे अन्य नेताओं, लाला लाजपतराय तकका यह कहना है कि विद्यार्थियोंसे स्कूलोंका त्याग करनेके लिए कहना बहुत खतरनाक कदम उठाना है। इन नेताओंके विचारोंका आपपर कुछ भी असर न हो, मैं यह अपेक्षा कर ही नहीं सकता। मेरा तो विद्यार्थियोंसे इतना ही अनुरोध है कि आप हमारे इन अनन्य देशभक्त नेताओंके कथनपर भली-भाँति विचार करें, और इस तरह विचार करनेके बावजूद अगर आपको यह लगे कि मैं जो कह रहा हूँ वही उचित है तो स्कूलोंका परित्याग करें।

कोई कह सकता है कि हम जो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं क्या वह सिर्फ आज ही विष-जैसी हो गई है? सरकार चाहे कितनी ही खराब क्यों न हो, लेकिन हम जिन स्कूलोंमें पढ़ने जाते हैं उनमें अगर सुव्यवस्था है, अच्छे प्रोफेसर हैं, अच्छे शिक्षक हैं तो हमें किसलिए उनका त्याग करना चाहिए? यह प्रश्न प्रत्येक विद्यार्थीके मनमें उठेगा।

पंजाब और खिलाफतके मसले उठनेतक सरकारकी नीति सह्य थी। मैं शपथपूर्वक कहता हूँ कि जब मैं वहाँ था तब मुझे पूरा-पूरा विश्वास था कि हमें न्याय अवश्य मिलेगा। मुसलमान भाइयोंसे भी मैं यही कहता था कि ब्रिटिश प्रधान मन्त्री लॉयड जॉर्जने आपको जितना देनेका वचन दिया है उतना तो आपको मिलकर रहेगा। तथापि पंजाबके मामलेमें हमें बहुत जबरदस्त धक्का लगा है और उस अन्यायपर पर्दा

  1. बम्बईके लिए जल-वितरणका प्रबन्ध।
  2. अहमदाबादके लिए जल-वितरणका प्रबन्ध।