तत्पश्चात् कालेज छोड़नेवाले विद्यार्थियोंके नाम पढ़े गये और विद्यार्थियोंकी ओरसे प्रश्न पूछे जानेपर गांधीजीने जो उत्तर दिये वे निम्नलिखित हैं:
प्र॰——महात्माजी, नागपुरमें जो कांग्रेस अधिवेशन होनेवाला है अगर उसमें इस प्रस्तावको मुल्तवी रखा गया तो हमें क्या करना चाहिए?
उ॰——मेरे मतानुसार नागपुर अधिवेशनमें इस प्रस्तावको मुल्तवी रखनेकी बात ही नहीं हो सकती। तथापि जिन व्यक्तियोंने यहाँ प्रस्तुत सिद्धान्तको समझ लिया है उनके लिए, नागपुर कांग्रेस क्या प्रस्ताव पास करती है और क्या नहीं, यह बात कोई महत्त्व ही नहीं रखती। गुजरातके विद्यार्थियोंमें जो चेतना आई है उसे देखते हुए नागपुर कांग्रेसके लिए ऐसा प्रस्ताव पास न करना असम्भव हो जायेगा।
महात्माजी, आप विद्यार्थियोंसे आत्मघातकी अपेक्षा करते हैं अथवा स्वार्थ-त्यागकी?
मैं विद्यार्थियोंसे स्वार्थ-त्याग करवाना चाहता हूँ और स्वार्थ-त्यागसे [उन्हें] आत्म-रक्षाके लिए तत्पर करना चाहता हूँ।
गुजरात कालेजकी स्थापना तो गुजराती जनता द्वारा दी गई दान- राशिसे की गई है। सरकार तो सिर्फ उसकी व्यवस्था करती है। क्या हमें अपनी ही इस सम्पत्तिका त्याग कर देना चाहिए अथवा हमारा सरकारसे उसकी व्यवस्था वापस ले लेना उचित होगा?
यदि हम किसी व्यक्तिको विश्वासपूर्वक कोई वस्तु सौंपते हैं और वह उसका दुरुपयोग करता है तो कानूनके अनुसार भी ऐसा व्यक्ति विश्वासघाती कहलायेगा। एक धोबीको हमने अपने कपड़े धोनेके लिए दिये और वह उनका कुछ और ही उपयोग करे तो उसपर चोरीका आरोप लगाया जाता है। ठीक उसी तरह मैं सरकारपर चोरीका, विश्वासघातका आरोप लगा रहा हूँ कि "तुम्हें जब कालेजका कार्य-भार सौंपा था तब हमें इस बातकी कोई खबर न थी कि तुम पंजाब और खिलाफतके प्रश्नको लेकर अन्याय करोगे।" इसके अतिरिक्त जैसा कि अध्यक्ष महोदयने कहा है, गुजरात कालेजमें भरती कोई जानवरोंकी नहीं होगी। यह कालेज अन्ततः हमारा ही है। अपनी सम्पत्तिपर, जो इस समय सरकारके हाथमें है, पूरा-पूरा और सच्चे अर्थोंमें अधिकार प्राप्त करनेके लिए उसके दुरुपयोगमें हिस्सा लेना छोड़ देना चाहिए। हमारे अपने घरमें महामारी फैलती है तो हम उसका त्याग कर देते हैं। ठीक उसी तरह चूँकि इस कालेजपर से हमारा अधिकार उठ गया है इसलिए हमें इसे छोड़ देना चाहिए। यदि किसी व्यक्तिका हाथ गल रहा हो तो डाक्टर कानुगा उसे काट डालेंगे क्योंकि इस हाथमें, शरीरको गलानेवाले कीटाणुओंने घर कर लिया है। जहाजके लोग तूफानके समय अपने सामानको समुद्रमें फेंक देते हैं; यह कोई आत्मघात करना नहीं है। उसी तरह इस समय हमें अपनी मिल्कियत होनेके बावजूद ऐसे स्कूलोंका त्याग करना चाहिए और इस तरहके त्यागसे ही हम अपनी मिल्कियतको वापस पा सकेंगे।
महात्माजी, जो स्कूल सरकारी न होकर प्राइवेट हों क्या हमें उनका भी परित्याग कर देना चाहिए?