जो स्कूल सरकारसे सम्बद्ध हों उन्हें छोड़ देना चाहिए, क्योंकि इन स्कूलोंपर सरकारका प्रभाव है, वे सरकारकी नीतिके अधीन हैं। मेरे खयालसे तो उन सभी स्कूलोंको छोड़ देना चाहिए जहाँ सरकारी प्रभावकी थोड़ी-सी भी गन्ध मौजूद हो।
थोड़े-से विद्यार्थियोंके स्कूल छोड़ देनेसे सरकारपर क्या असर होनेवाला है?
इसमें प्रभावका सवाल नहीं है; सवाल तो यह है कि हमें अन्यायीके हाथों दी गई वस्तु लेनी चाहिए अथवा नहीं। अपने आत्म-सम्मानको बनाये रखना हमारा धर्म है। जिस भाई अथवा बहनने स्कूल छोड़ दिया उस हदतक उसने अपना फर्ज अदा किया और संसारकी भी सेवा की। त्याग तो एक व्यक्तिका भी प्रभावित कर सकता है।
मेरे मतानुसार तो सरकारकी नीयत पहलेसे ही हमें शिक्षा प्रदान करने की नहीं थी; कालेजों आदिका त्याग करके हम क्या सरकारकी मदद ही नहीं करते?
मैं तो यह नहीं मानता कि सरकार हमसे कालेज छुड़वाना चाहती है। सरकारने तो इस सम्बन्धमें परिपत्र भी जारी किया है। सरकारको तो यह आशंका है कि "यदि कालेज और स्कूल खाली हो जायेंगे तो जनतापर हमारा जो अधिकार है उसे हम खो बैठेंगे।" सरकार चाहे या न चाहे हमें उचित कार्य करना चाहिए।
क्या हमें उन स्कूलोंका भी त्याग करना चाहिए जो राष्ट्रीय स्कूल बनने जा रहे हैं?
आपको इन स्कूलोंके व्यवस्थापकोंको यह पत्र लिख भेजना चाहिए कि आपने अपने स्कूलको राष्ट्रीय स्कूलमें परिवर्तित करनेका जो विचार किया है इसके लिए हम आपको बधाई देते हैं और विनती करते हैं कि आप तुरन्त ही सरकारको नोटिस दे दें ताकि हम निर्भय हो जायें।
माँ-बाप हमारी बात स्वीकार न करें तो हमें क्या करना चाहिए?
आप माता-पिताको समझायें। हमें अपने माता-पिताका आदर-सम्मान करना चाहिए उनके प्रति विनय-भाव रखना चाहिए। उनके प्रति अपनी आज्ञाकारिताके भावको नहीं भूलना चाहिए। लेकिन जहाँ हमें उनका कहना अनुचित जान पड़े वहाँ हम विनयपूर्वक उस कथनकी अवमानना कर सकते हैं।
यदि राष्ट्रीय स्कूलोंको राजद्रोहात्मक मानकर उनपर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये तो हमें क्या करना चाहिए?
तो प्रत्येक सरकारी स्कूलसे विद्यार्थी निकल पड़ें। ऐसेमें भी यदि जनता सरकारी स्कूलोंके पक्षमें बनी रहे तो वह सदा गुलाम बनी रहेगी। जनताकी राष्ट्रीय शिक्षाको सरकार नहीं रोक सकती, वह घर-घर जाकर पढ़ानेवाले अध्यापकों और स्वयंसेवकोंको नहीं रोक सकती।
महात्मा गांधीजी, आपने जो यह कहा कि स्कूल छोड़ देनेसे सरकारका दूधेश्वर वाटर वर्क्स बन्द हो जायेगा सो कैसे?
हम सरकारको कर्मचारियोंके रूपमें जल वितरित करते हैं और इन्हीं कर्मचारियोंके बलपर ही सरकारकी तृषा शान्त होती है। इसलिए यदि यह नल बन्द हो जाये