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कच्चागढ़ीकी घटना

तो सरकारको प्यासा मरना पड़े। लॉर्ड मेकॉलेने भी कहा है कि स्कूलों द्वारा ही सरकारको कर्मचारी मिल सकते हैं।

कुछ लोग यह मानते हैं कि बंग-भंग आन्दोलनके बुदबुदेके समान यह आन्दोलन भी खत्म हो जायेगा; इस सम्बन्धमें आपका क्या कहना है?

जनसमुद्रमें ऐसे बुदबुदे हमेशा उठा करते हैं जो उठकर शान्त हो जाते हैं। माँ जितने बच्चोंको जन्म देती है, वे सबके-सब जीवित नहीं रह पाते। यह कार्य अपनी भूलोंको ध्यानमें रखकर ही हमें करना चाहिए। बंग-भंग आन्दोलनमें दो त्रुटियाँ थीं : (१) सरकारी स्कूलोंसे बच्चोंको न उठा लेने तथा (२) नेताओं द्वारा अपने बच्चोंको सरकारी स्कूलोंमें बनाये रखनेकी। इन दोनों त्रुटियोंको जिस हदतक रोका जा सकता है उस हदतक रोकनेकी कोशिश की गई है। अगर मुझे विद्यार्थियोंका शाप लगेगा तो उसके लिए मैं पूर्णतया तैयार हूँ। जिस व्यक्तिको जनताकी सेवा करनी हो उस व्यक्तिको शापको तो पहलेसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए। इसका जो परिणाम निकले वह मुझे और जनताको सहन-करना चाहिए। इसीसे आनेवाली पीढ़ी उन्नत हो सकेगी।

क्या इस आन्दोलनपर युद्धको सारी शर्ते लागू होती हैं?

इस आन्दोलनमें युद्धकी सभी बातें आ जाती हैं और सच पूछिए तो यह युद्ध ही है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३-१०-१९२०

 

१७२. कच्चागढ़ीको घटना

३७वीं डोगरा पल्टनके लेफ्टिनेन्ट ह्यविटने २८ जुलाईके अंकमें प्रकाशित "गोलीके शिकार 'मुहाजरीन' के बारेमें कुछ और" शीर्षक लेखके कुछ वक्तव्योंकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया है। उपर्युक्त रिपोर्ट[१]कच्चागढ़ीमें हुई घटनासे सम्बन्धित है, और जैसा कि आरम्भिक शब्दोंसे पता चलेगा, इसकी सूचना एच॰ जे॰ मुहम्मदने दी थी। लेफ्टिनेन्ट ह्यूविट रिपोर्टमें कही गई बहुत-सी बातोंको सच नहीं मानते और विशेष रूपसे निम्नलिखित विशिष्ट आरोपोंके प्रति अपना असन्तोष प्रकट करते हैं; ये आरोप उनके विचारसे मिथ्या और द्वेषपूर्ण हैं:

अधिकारी उसके शरीरपर झुक गया और उसने उसकी गर्दनपर गहरा वार किया;
"वे (अर्थात् ब्रिटिश सैनिक और अधिकारी) तो बस हत्या, केवल नृशंस हत्यापर तुले हुए थे, क्योंकि उनकी रक्तपिपासा इसी तरह बुझ सकती थी, उनका क्रोध इसी प्रकार शान्त हो सकता था।"
  1. यह रिपोर्ट यहाँ उद्धृत नहीं की गई।