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पंजाबमें दमन

जायेंगी जब वे सच्ची न हों; क्योंकि तथ्योंका विवरण-भर प्रस्तुत करनेका यह मतलब कदापि नहीं हो सकता कि सम्बन्धित व्यक्तिने प्रजाजनोंमें असन्तोषका भाव उत्पन्न करने या उनके विभिन्न वर्गोंके बीच शत्रुताकी भावना फैलानेकी कोशिश की। जनरल डायरके कृत्यों, श्री लॉयड जॉर्जके वचन-भंग और वाइसराय तथा श्री मॉण्टेग्यु द्वारा ओ'डायरशाहीका बचाव करनेकी चर्चा करना, सत्य बोलना ही है; फिर भी इस सबसे ऐसी सरकारके प्रति जो अपने अधिकारियोंके अपराधपूर्ण कार्योंके दरगुजर कर देने अथवा सोच-समझकर दिये गये वचनोंके भंग करनेकी दोषी है, असन्तोषके अलावा और कौन-सी भावना पैदा हो सकती है? यदि सच बोलना अपराध है तो असन्तोष फैलाना कर्त्तव्य है, उत्तम गुण है। इसी तरह यदि सच बोलनेसे विभिन्न वर्गोंके बीच शत्रुताकी भावनाका प्रसार होता है तो भी अगर हम सत्यका बलिदान न करना चाहते हों तो यह खतरा उठाना ही पड़ेगा। जो नुकसान पहुँचा सकते हैं लेकिन जिनमें सार है ऐसे तथ्योंको दबानेसे मित्रताकी भावनाको बढ़ावा नहीं मिल सकता, बल्कि इस दुरावके कारण सम्बन्ध और भी बिगड़ जाते हैं।

जहाँतक मुझे मालूम हैं श्री जफर अली खाँके मामलेमें दो बातें ऐसी हैं जिनकी सबूतोंके आधारपर पुष्टि नहीं की जा सकती। मक्कामें कभी आग नहीं लगाई गई, और इस कथनका भी कोई आधार नहीं दिखाई देता कि बगदादमें कुमारी लड़कियोंका शील-भंग किया गया। मुझे पता नहीं कि श्री जफर अली खाँपर जो ये दोनों बातें कहनेका आरोप लगाया गया है सो उन्होंने सचमुच कही थीं या नहीं। अगर उन्होंने ऐसा कहा हो तो मुझे सचमुच बहुत दुःख होगा। खिलाफत कार्य-कर्त्ताओंको विशेष रूपसे तथा सामान्य रूपसे सब कार्यकर्त्ताओंको अतिशयोक्तियोंसे बचनेके लिए अधिकसे-अधिक आगाह किया जाना चाहिए। मनगढ़न्त बातोंकी अपेक्षा सही बातोंमें हमेशा अधिक बल होता है। मनगढ़न्त बातें अन्ततः उद्देश्यको नुकसान पहुँचाती हैं और इससे बोलनेवाले की बदनामी भी होती है। सरकारके विरुद्ध निर्विवाद तथ्योंके आधारपर कही गई बातें अकाट्य होती हैं। और जब ऐसी स्थिति पैदा हो जायेगी कि हमारे कार्यकर्त्ताओंके विरुद्ध लगाया गया अतिशयोक्तिका कोई भी आरोप सच्चा सिद्ध नहीं हो पायेगा तो जन-आन्दोलनको बड़ा बल मिलेगा।

लेकिन श्री खाँ जिन अभियोगोंको स्वीकार करेंगे, और जो उन्हें अवश्य करने चाहिए, वे अभियोग सरकारके विचारसे बहुत गम्भीर हैं; तथापि श्री खाँके समान मैं भी ऐसे अभियोगोंके लिये अपराधी हूँ। उदाहरणस्वरूप युवराजके आगमनपर किये जानेवाले स्वागत-समारोहोंमें भाग लेनेके लिए श्री खाँने जो शर्तें रखी हैं, वैसी शर्ते मैं भी रखना चाहूँगा। यह भी सच है कि जो शर्तें रखी गई हैं यदि उन्हें पूरा नहीं किया जाता तो यह साम्राज्य ध्वस्त हो जायेगा।

अभीतक सरकारने उन भाषणोंकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया है जिनमें लोगोंको असहयोगकी सलाह दी गई है और ऐसी माँग की गई है जैसी माँग करने या सलाह देनेकी बात श्री जफर अली खाँके बारेमें कही जाती है। इस कारण मैं सोचने लगा था कि जबतक आन्दोलन हिंसात्मक रूप धारण न कर ले