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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उत्थानके बजाय पतनकी सम्भावना हो; और उतनी ही दृढ़ताके साथ मैं यह भी मानता हूँ कि वे अपने बच्चोंको एक ऐसे लुटेरेके प्रबन्ध, नियन्त्रण या प्रभावमें चलनेवाले स्कूलमें नहीं भेजेंगे, जिसने उनका सब कुछ छीन लिया है। मैं मानता हूँ कि सरकारी स्कूलोंमें राष्ट्रके बच्चोंका पतन ही होता है। मेरे विचारमें ये स्कूल और कालेज एक ऐसी सरकारके प्रभावमें हैं जिसने जान-बूझकर राष्ट्रके सम्मानपर हाथ डाला है, और इसलिए इन स्कूलोंसे अपने बच्चे हटा लेना राष्ट्रका कर्त्तव्य है। सम्भव है, इन स्कूलोंमें भी कुछ पढ़नेवाले लोग पतनकी प्रवृत्तिको रोक सकते हों। लेकिन सिर्फ इसी कारणसे कि कुछ गिने-चुने लोग अपने परिवेशसे मुक्त होकर ऊपर उठ पाये हैं, इन स्कूलोंमें राष्ट्रीय अपमानका जो सिलसिला जारी है, उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। मेरे विचारसे यह बात स्वयंसिद्ध है कि आज राष्ट्रके सम्मान्य नेता यह अनुभव नहीं करते कि सरकारी नियन्त्रणमें चलनेवाले स्कूल, मैंने जैसा बताया है, उस रूपमें दूषित हैं।

कोई कह सकता है कि ये स्कूल पंजाबके साथ अन्याय किये जाने और खिलाफतके सम्बन्धमें वादा-खिलाफी होनेसे पहले जितने बुरे थे, आज उससे अधिक बुरे तो नहीं हैं, और हम इन दो वारदातोंसे पहलेतक तो इनको सहन करते ही आये थे। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि ये स्कूल जितने बुरे पहले थे, उससे बहुत अधिक बुरे आज नहीं हैं। लेकिन जहाँतक मेरी बात है, पंजाब तथा खिलाफतके सम्बन्धमें जो धोखेबाजियाँ की गईं, उनके कारण वर्तमान शासन-प्रणालीके विषयमें मेरे विचारोंमें क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया है। इस प्रणालीकी सहज कमियोंकी जबतक मुझे जानकारी नहीं थी तबतक यह मेरे लिए इस हदतक सह्य अवश्य रही कि मैंने इन स्कूलोंके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। और ठीक इसी कारणसे मुझे आशंका होती है कि जो लोग इन स्कूलोंको हानिकारक न मानकर इनके बहिष्कारका विरोध करते हैं वे पंजाब और खिलाफत-सम्बन्धी अन्यायोंको उतना महत्त्व नहीं देते जितना मैं देता हूँ।

और इसलिए सर्वश्री एस॰ बी॰ तिलक, पटेल, त्रिपाठी और अन्य लोगोंको मैं बधाई देता हूँ कि उन्होंने अपने-अपने कालेज छोड़ दिये और सो भी ऐसे समय जब वे अपना शिक्षण समाप्त करने ही वाले थे। यही कारण है कि मैं कुमारी देसाई और कुमारी पटेलको भी हाई स्कूल छोड़ देनेके लिए बधाई देता हूँ। लोग शायद यह न जानते हों कि इन उत्साही लड़कियोंने नौजवानोंकी तरह ही स्वेच्छासे स्कूल छोड़े हैं।

मैं निःसंकोच भावसे यह कामना करता हूँ कि भारतके युवासमुदाय—— लड़के और लड़कियों दोनों——ने यदि पंजाबमें की गई बर्बरताके अपमानजनक दंशका अनुभव अपने व्यक्तिगत अपमानकी तरह किया हो या अगर वे खिलाफत-सम्बन्धी वचन-भंगका मतलब समझते हों तो सरकारी नियन्त्रणमें चलनेवाले स्कूलों और कालेजोंको खाली कर देंगे। यह कदम उठाकर वे क्षण-भरमें जो नैतिक शिक्षा प्राप्त करेंगे उसका पलड़ा उस क्षतिसे कहीं भारी पड़ेगा जो उन्हें अस्थायी तौरपर किताबी शिक्षा बन्द-रखने से होगी। कारण, जिस दिन लड़के और लड़कियाँ सरकारी नियन्त्रण में चलने-