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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३५९

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साम्राज्यका अर्थ

वाले स्कूलोंका परित्याग कर देंगे, वह दिन हमारे लक्ष्यकी ओर एक निश्चित प्रगतिका दिन होगा, उस दिन राष्ट्रीय चिन्तनमें एक क्रान्तिका सूत्रपात होगा; वह दिन स्कूलों और कालेजोंके इस व्यामोहसे हमारी मुक्तिका दिन होगा। क्या इस राष्ट्रमें इतनी क्षमता नहीं है कि यह सरकारी हस्तक्षेप, संरक्षण, परामर्श या सहायताके बिना अपनी शिक्षाकी व्यवस्था आप कर सके? वर्तमान स्कूलोंका परित्याग कर देनेका मतलब है, अपनी इस क्षमताको पहचान लेना कि हम बड़ीसे- बड़ी कठिनाईके बावजूद अपनी शिक्षाकी व्यवस्था आप ही कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-९-१९२०
 

१७५. साम्राज्यका अर्थ

शिक्षा-विभागकी ओरसे निम्नलिखित परिपत्र जारी किया गया है:

इस प्रान्तके शिक्षकों और शिक्षा-अधिकारियोंसे कहा जाये कि वे लोगोंको साम्राज्यका सही अर्थ समझने और उनके मनसे यह धारणा दूर करनेमें कि यह साम्राज्य सैन्यवादपर आधारित है, सहयोग करें। इसके लिए वे सम्बन्धित पक्षोंको प्रोत्साहित करें कि वे उदार उद्देश्योंको आगे बढ़ाने तथा परस्पर मैत्री-भाव और सहानुभूतिकी भावना उत्पन्न करनेके प्रयासमें एक-दूसरेको भाई-भाई समझें। विशेष रूपसे भारतमें यह-सब जरूरी है, क्योंकि आज यहाँ उपर्युक्त भावनाओंसे ठीक विपरीत ढंगकी भावनाएँ जोर पकड़ती जा रही हैं।

यह परिपत्र इसी महीनेकी १ तारीखको पूनासे जारी किया गया है।

यह परिपत्र मेरे विचारसे असहयोगकी विजय है। हमें अधिकृत तौरपर अक्सर यह बताया गया है कि साम्राज्य अन्ततः सैनिक बलपर ही आधारित है। आज जब कि हम इस ताकतसे अपने सारे नाते-रिश्ते तोड़कर, इसे एकाकी बना देनेकी कोशिश कर रहे हैं, और इसके विरुद्ध अपनी ओरसे शक्तिका प्रयोग किये बिना यह दिखा देनेका प्रयत्न कर रहे हैं कि यदि इस ताकतको जनताके जाने-अनजाने सहयोगका बल प्राप्त न हो तो यह बिलकुल बेकार है, तब हमारे सामने एक ऐसा परिपत्र आया है जिसमें शिक्षकोंसे यह दिखानेमें सहयोग देनेके लिए कहा गया है कि यह साम्राज्य शक्ति अथवा सैन्यवादके आधारपर नहीं बल्कि पारस्परिक मैत्रीभावके आधारपर खड़ा है। इसे मैं असहयोगी विजय समझता हूँ, क्योंकि इसके कारण सैन्यबलको पीछे हट जाना पड़ा है। सर माइकेल ओ'डायरने अभिमानमें चूर होकर सारे राष्ट्रको अपनी क्रूर शक्तिकी आगमें झोंक दिया और कुछ देरके लिए आतंकका शासन कायम हो गया। लेकिन उसका कुछ असर न हुआ और अब उसे नरम शब्दोंका जामा पहनानेकी कोशिश हो रही है। लेकिन यह भी विफल होकर रहेगी।

यह परिपत्र छलसे भरा हुआ है। अत्याचारियों और उनके अत्याचारके शिकार निरीह लोगोंके बीच परस्पर मैत्री और सहानुभूतिकी बात करना अत्याचारके साथ