धोखेबाजीको मिलाकर काम करना है। हमें असहयोग ही इससे छुटकारा दिला सकेगा।
झूठी बातें कहकर मैत्री-सम्बन्ध स्थापित करनेका प्रयत्न करना निरर्थक है। जनताकी सच्ची मैत्री प्राप्त करनेका और उन्हें यह दिखानेका कि साम्राज्य शक्ति तथा सैन्यवादपर आधारित नहीं है, सबसे अच्छा और एकमात्र मार्ग यही है कि सरकार लोगोंपर विश्वास करके, साम्राज्यके खो देनेका खतरा उठाकर भी इस देशसे अनावश्यक सेना हटा ले और आम तौरपर अंग्रेज लोग हमें मन व कर्मसे हर तरह अपनी बराबरीका मानें। यह तभी सम्भव होगा जब वह मुसलमानोंकी भावनाओंका खयाल करते हुए खिलाफतके प्रश्नका सन्तोषजनक हल ढूँढ निकाले तथा पंजाबके प्रति किये गये अन्यायका पूरा निराकरण करे।
लेकिन सामान्य अंग्रेजोंके लिए ऐसा करना असम्भव जान पड़ता है। उन्हें तो कुछ इस तरहकी शिक्षा दी गई है कि वे हमारे साथ मनुष्यवत् व्यवहार कर ही नहीं सकते; मानो हम मनुष्य न होकर ईंट-पत्थर हों। मैं पाठकोंका ध्यान उस विवरणकी ओर आकर्षित करना चाहूँगा, जिसमें न्यूजीलैंडमें हमारे देशभाइयोंके साथ किये जानेवाले व्यवहारकी चर्चा की गई है। न्यूजीलैंडके गोरोंके कृत्योंसे अधिक मनमानी नृशंसताकी मैं कल्पना तक नहीं कर सकता। उपनिवेशवादी, दुरात्मा लोग हैं सो बात नहीं है। अपने क्षेत्रमें वे वीर, उदार, दानशील और सुसंस्कृत लोग हैं। लेकिन हमारे सम्पर्कमें आते ही वे अपना सन्तुलन खो बैठते हैं। हम लोग उनके सहज शिकार हैं; उनकी सांस्कृतिक चेतना हमारे साथ दुर्व्यवहार करनेमें उसी प्रकार आड़े नहीं आती जैसे साँपको मारनेमें मानव समाजके अधिकांश लोगोंके आड़े नहीं आती। मैंने यह कोई बेमेल उदाहरण नहीं दिया है। हजारों लोग इस विचारको भी सहन नहीं कर सकते कि कोई भारतीय उनके साथ समभावसे रहे अथवा वैसी माँग करे। गोरोंका अपनेको अन्य लोगोंसे उच्च समझना, जैसा कि श्री एन्ड्र्यूजने बताया है, एक धर्म बन गया है। राष्ट्रपति क्रूगर[१]कहा करते थे कि ईश्वरने एशियाइयोंको श्वेत लोगोंका गुलाम बननेके लिए ही रचा है। उन्होंने अपने इस विचारको विधि-पुस्तकमें भी स्थान दिया। इस सम्बन्धमें उनका रवैया बिलकुल साफ था और वे उक्त बातको स्वीकार करते थे। अन्य लोग इसमें विश्वास करते हैं, तदनुसार आचरण करते हैं, लेकिन सम्भव हो तो वे सौम्य-शब्दावलीका प्रयोग करके और सम्भव न हो तो किसी बुरे तरीकेसे उसके तीखेपनको कम करनेकी नीयत रखते हैं।
हमारे गलेमें हीनताका जो पट्टा बँधा है, उसके लिए हम अपने अलावा और किसीको दोष नहीं दे सकते और इसे दूर भी स्वयं ही कर सकते हैं; इसके लिए हमें अथक परिश्रम करना होगा।
यंग इंडिया, २९-९-१९२०
- ↑ स्टीफन्स जोहानिस पाल्स क्रूगर (१८२५-१९०४); बोअर-नेता तथा दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके राष्ट्रपति।