१७६. श्री पैनिंगटनकी आपत्तियोंका उत्तर
मैं बड़े हर्षके साथ श्री पैनिंगटनका[१]पत्र और उसके साथ नत्थी लेख[२]छाप रहा हूँ। स्पष्ट ही श्री पैनिंगटन 'यंग इंडिया' के नियमित पाठक नहीं हैं; अगर होते तो देखा होता कि भीड़की ज्यादतियोंकी जितनी भर्त्सना मैंने की है उतनी और किसीने नहीं की। लगता है उनका ऐसा खयाल है कि मैंने जनरल डायरपर बस एक वही लेख[३]लिखा है जिसपर उन्होंने आपत्ति की है। उन्हें शायद यह मालूम नहीं कि मैंने जलियाँवाला बागके नरसंहारका अधिकसे-अधिक निष्पक्षताके साथ विवेचन किया है। और वे जिस दिन चाहें, उस नरसंहारके सम्बन्धमें हमारे निष्कर्षोंके समर्थनमें मेरे और मेरे साथी सदस्यों द्वारा जुटाये गये प्रमाण देख सकते हैं। 'यंग इंडिया' के साधारण पाठक सभी तथ्योंसे अवगत थे, इसलिए यह अनावश्यक ही था कि मैं अपनी बातोंके समर्थनमें और कुछ लिखता। लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे सामने श्री पैनिंगटनका जो रूप उभरता है वह एक ठेठ अंग्रेजका रूप है, जो किसी भी चीजके साथ अन्याय नहीं करना चाहता, फिर भी विश्वकी घटनाओंको समझनेमें वह शायद ही न्याय करता हो, क्योंकि उसके पास उन घटनाओंके अध्ययन करनेका समय ही नहीं है। वह बस ऊपर-ऊपरसे उनका हवाला पढ़ लेता है और सो भी ऐसे अखबारों द्वारा प्रस्तुत किया गया हवाला, जिनका उद्देश्य सिर्फ दलगत विचारोंको उभारना है। इसलिए एक सामान्य अंग्रेज, बहुत संकुचित और स्थानीय महत्त्वके मामलोंको छोड़कर, अन्य सभी बातोंकी शायद सबसे कम जानकारी रखता है, हालाँकि वह दावा यही करता है कि उसे हर तरहके मामलेकी पूरी जानकारी है। इस प्रकार श्री पैनिंगटनका अज्ञान अन्य अंग्रेजोंके अज्ञानका ही एक नमूना है, और यह अज्ञान इस बातका सबसे बड़ा कारण प्रस्तुत करता है कि अब हमें अपने सारे कारबारके संचालनका भार अपने हाथोंमें ले लेना चाहिए। शासन करनेकी योग्यता तो काम करते-करते ही आयेगी। अगर हम उन लोगोंसे बराबर शिक्षा पानेकी प्रतीक्षा करते रहें जिनका स्वाभाविक हित इस शिक्षण-कालको अधिकसे-अधिक लम्बा खींचते जानेमें ही है, तो हममें योग्यता कहाँ से आयेगी?
लेकिन अब जरा श्री पतिंगटनके पत्रपर विचार करें। उनकी शिकायत है कि "किसी भी व्यक्तिके मामलेकी समुचित जाँच नहीं की गई"। लेकिन इसमें हमारा क्या दोष? भारत तो बराबर आग्रहपूर्वक यह माँग करता रहा है कि पंजाबके प्रति किये गये अपराधसे सम्बद्ध सभी अधिकारियोंके मामलोंकी जाँच की जाये।