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श्री पैनिंगटनकी आपत्तियोंका उत्तर


डंडा फौजका, जिसे श्री पॅनिंगटनने 'ब्लजन आर्मी' की गौरवास्पद संज्ञा दी है, कहीं नाम-निशानतक नहीं देखा गया। अमृतसरमें कोई विद्रोह नहीं हुआ था। जिस भीड़ने भयंकर मारकाट और आगजनी की, उसमें एक ही समुदायके लोग शामिल नहीं थे। परचा सिर्फ लाहौरमें ही चिपकाया गया था, अमृतसरमें नहीं। इसके अलावा श्री पैनिंगटनको अबतक इतनी जानकारी तो हो जानी चाहिए थी कि १३ तारीखको जो सभा हुई, उसका उद्देश्य अन्य बातोंके साथ-साथ भीड़की ज्यादतियोंकी भर्त्सना करना भी था। यह बात अमृतसरके मुकदमेके दौरान सिद्ध हो चुकी है। जो लोग जनरल डायरके इर्द-गिर्द खड़े थे वे उन्हें रोक नहीं पाये। जनरल डायरका कहना हैं कि उन्होंने बस एक क्षणमें ही गोली चलानेका निश्चय कर लिया। उन्होंने किसीसे सलाह नहीं की। पत्र-लेखक [श्री पैनिंगटन] महोदय कहते हैं कि सैनिकोंने उस कार्रवाईमें "जिसे उस स्थितिमें 'नरसंहार' कहना अनुचित नहीं होगा" भाग लेनेपर आपत्ति की होती। इससे तो यही प्रकट होता है, मानो वे भारतमें कभी रहे ही न हों। कितना अच्छा होता, अगर भारतीय सैनिकोंने सर्वथा निर्दोष, निहत्थे और बेतहाशा भागते हुए लोगोंपर गोली चलाने से इनकार करके नैतिक साहसका परिचय दिया होता। लेकिन भारतीय सैनिकोंको तो ऐसे दासत्वके वातावरणमें शिक्षा-दीक्षा दी गई है कि वे ऐसा कोई सही काम करनेका साहस ही नहीं कर सकते।

आशा है श्री पैनिंगटन केवल इसी कारणसे मुझपर फिर अपुष्ट बातें कहनेका आरोप नहीं लगायेंगे कि मैंने उनके सम्बन्धमें पुस्तकोंसे उद्धरण नहीं दिये हैं। प्रमाण तो हैं ही——उनका लाभ उठाना न उठाना उनकी मर्जीपर निर्भर करता है। मैं तो उन्हें सिर्फ इतना भरोसा दिला सकता हूँ कि मेरी सारी बातें अधिकांशतः सरकारी सूत्रोंसे प्राप्त निश्चित प्रमाणोंपर आधारित हैं।

श्री पैनिंगटन कहते हैं कि १० तारीखको जो-कुछ हुआ, मैं उसका बिलकुल सही विवरण प्रकाशित करूँ। यह विवरण उन्हें रिपोर्टमें मिल जायेगा और अगर वे धैर्यके साथ रिपोर्टका अध्ययन करेंगे तो देखेंगे कि सर माइकेल ओ'डायर और उनके अधीनस्थ अधिकारियोंने लोगोंको भड़काकर बिलकुल उन्मत्त बना दिया था, और जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूँ, इस उन्मत्तताकी जितनी तीव्र भर्त्सना मैंने की है उतनी और किसीने नहीं की। दूसरे दिनका हाल तो बस इतनेसे ही स्पष्ट हो जाता है अर्थात् भीड़ बिलकुल शान्त थी और इस "शान्ति" में बाधा पहुँचानवाली अगर कोई चीज थी तो वह थी——अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ, कत्ले-आम और अधिकारियों द्वारा बादमें लगातार किये गये अपराध।

मैं श्री पतिंगटनकी सराहना करता हूँ कि उन्होंने सत्यकी खोज करने की कोशिश की है। लेकिन उन्होंने सत्यकी खोज करनेके लिए सही मार्गका अनुसरण नहीं किया है। मैं उन्हें हंटर समिति और कांग्रेस समितिके सामने दिये गये बयानोंको पढ़नेका सुझाव देता हूँ। उन्हें रिपोर्ट पढ़ने की जरूरत नहीं। लेकिन बयान पढ़कर उन्हें यह प्रतीति हो जायेगी कि मैंने जनरल डायरके विरुद्ध मामलेको बढ़ा-चढ़ाकर नहीं, घटाकर ही पेश किया है।