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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३६४

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किन्तु जब मैं उस विवरणको पढ़ता हूँ जिसमें उन्होंने स्वयं अपना परिचय दिया है तो मुझे कोई आशा नहीं रह जाती कि वे कभी सत्यकी खोज कर पायेंगे; क्योंकि उन्होंने अपने बारेमें कहा है कि "जब सरकारी अधिकारियोंकी हत्या और अन्य तरीकोंसे सुधार प्राप्त करना फैशन नहीं हुआ था उस समय वे १२ वर्षतक दक्षिण भारतके विभिन्न जिलोंमें चीफ मजिस्ट्रेट रह चुके थे।" कोई भी आवेश या पूर्वग्रहसे ग्रस्त व्यक्ति कभी सत्यको नहीं पा सकता और स्पष्ट है कि श्री पैनिंगटन आवेशमें भी हैं और पूर्वग्रहसे भी ग्रस्त हैं। "जब सरकारी अधिकारियोंकी हत्या और अन्य तरीकोंसे सुधार प्राप्त करना फैशन नहीं हुआ था"——इन शब्दोंसे उनका क्या मतलब है? सौभाग्यवश हत्या द्वारा सुधार प्राप्त करनेमें विश्वास रखनेवाली विचारधारा जब यहाँ मर चुकी है, ऐसे समय हत्याकी बात करना उन्हें शोभा नहीं देता। जबतक अंग्रेज लोग उद्धततापूर्वक अपने-आपको दूसरोंसे श्रेष्ठ मानते रहेंगे या अज्ञानवश ऐसा मानते रहगे कि उनसे कोई गलती हो ही नहीं सकती, तबतक उनकी दृष्टिपर से कोहरा नहीं हटेगा और इस हालतमें वे कभी भी सत्यको नहीं देख सकेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २९-९-१९२०
 

१७७. भाषण : शिक्षकोंकी सभा, अहमदाबादमें

२९ सितम्बर, १९२०

किसी समय मैं खुद भी शिक्षक था और अब भी यह दावा किया जा सकता है कि शिक्षक ही हूँ। मुझे शिक्षाका अनुभव है। मैंने उसके प्रयोग करके देखे हैं। यह काम करते-करते मुझे ऐसा लगा कि जिस जातिके शिक्षक पुरुषत्व खो बैठते हैं, वह जाति कभी उठ नहीं सकती।

हमारे शिक्षक अपना पुरुषत्व जरूर गँवा बैठे हैं। जो वे करना नहीं चाहते, वही उन्हें मजबूरन करना पड़ता है। मार-पीटकर उनसे कोई कुछ नहीं कराता, लेकिन सूक्ष्म बलात्कार तो उनपर होता ही है। अपने बड़े अफसरोंकी धमकियों, वेतनके नुकसान या वेतन न बढ़ सकनेकी धमकियों या सूचनाओंसे शिक्षक घबरा जाते हैं।

अब हमारे सामने ऐसा मौका आ खड़ा हुआ है, जब शिक्षक और शिक्षिकाएँ अपनी जान, अपना माल और अपना वेतन, सब-कुछ जोखिममें डालकर भी साहसके साथ सच्ची बात विद्यार्थियोंके सामने रख दें। अगर वे ऐसा नहीं कर सकते तो अपनी आजीविकाका साधन उन्हें छोड़ देना चाहिए। इतना अगर आज मैं शिक्षकों को बता दूँ, तो मेरा आजका काम निपट गया। मेरे खिलाफ शास्त्रीजी जैसे महान् शिक्षक हैं। हिन्दू विश्वविद्यालय-जैसी संस्थाके संस्थापक पंडित मालवीयजी भी मानते हैं कि मैं जनताको उलटे रास्ते ले जा रहा हूँ। जो राष्ट्रवादी दलके हैं, उन्हें भी शंका है। फिर भी मुझे लगता है। कि मैं सही रास्तेपर हूँ।