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भाषण : शिक्षकोंकी सभा, अहमदाबादमें


बगदादसे आये हुए एक सज्जनने मुझे वहाँका अपना अनुभव सुनाया, जिससे मैं चकित हो गया हूँ। मैं कहता हूँ कि हिन्दुस्तानमें रहना मेरे लिए मुश्किल हो गया है। अगर मैं चौबीसों घंटे असहयोगका ही विचार न करता रहूँ——सोते वक्त भी मेरा मन इसी विचारसे शान्त होता है——तो मेरे लिए हिन्दुस्तानमें रहना असम्भव हो जाये। मैं मानता हूँ कि बगदादके अपढ़ अरब हमसे सैकड़ों दरजे आगे बढ़े हुए हैं। ये सज्जन कोई मामूली आदमी नहीं हैं। वे बगदादमें सरकारी नौकरीमें बड़े ओहदेपर थे। वे अंग्रेज सरकारके दुश्मन नहीं हैं। उन्होंने मुझसे वही कहा है, जो उन्हें अनुभव हुआ। गंगाबेनने[१]उनसे पूछा, "क्या वहाँ अंग्रेजोंका राज्य कायम रहेगा?" उन्होंने कहा, "वह क्या हिन्दुस्तान है?" जबतक एक भी अंग्रेज मैसोपोटामियामें रहेगा, तबतक अरब चैनसे नहीं बैठेंगे। अरबोंके पास गोला-बारूद या तलवार वगैरा नहीं है——होगा भी तो निकम्मा। किन्तु एक सामग्री उनके पास जरूर है। वे मानते हैं कि "यह देश हमारा है। अपने इस देशमें, जिसे हम न रहने दें, वह एक पल भी नहीं रह सकता।"

अंग्रेज सरकारने वहाँ जितने सिख भेजे, उन सबको उन्होंने काट डाला। मैं हिन्दुस्तानको यह सीख नहीं देता। मैं तो उलटे इस तरफ जानेसे लोगोंको रोकता हूँ। अरबोंका सिखोंसे कोई विरोध नहीं था। हमें तो यही देखना है कि अरबोंका मकसद क्या था। अंग्रेजोंने उन्हें बड़ी-बड़ी आशाएँ बँधाई। बगदादमें इतनी गरमी पड़ती है कि आप सब जैसे यहाँ बैठे हैं, वैसे वहाँकी रेतमें नहीं बैठ सकते। वहाँकी रेत इतनी तप जाती है कि उसपर खाना पकाया जा सकता है। अंग्रेज सरकारने कहा कि हम तुम्हारे लिए पक्की सड़कें बनायेंगे, रेल लायेंगे और जिनसे तुम्हें सुख मिले वे सब सहूलियतें कर देंगे। तुम्हें शिक्षा देंगे। मोटर भी अरबोंने पहले-पहल अभी-अभी देखी। किन्तु अरब तो एक ही बात जानते थे। उन्होंने कहा, "तुम हमारा मुल्क लेने आये हो।" यहाँके मुसलमानोंसे पहले ही मैसोपोटामियाके मुसलमान अंग्रेजोंको अपने देशसे निकाल रहे हैं।

अंग्रेजोंके हवाई जहाज उन्हें डरा नहीं सकते। हवाई जहाज हों या और कुछ हो, अरबोंको इससे क्या? वे तो प्राणोंको हथेलीपर लिये फिरते हैं। उनके पास है क्या, जो कोई ले लेगा? वे अपने खुदके लिए नहीं लड़ते। उनके कपड़े चमड़ेके होते हैं। वे तम्बूमें रहनेवाले ठहरे। अपने देशको——भले ही वह रेतीला हो——उन्हें बचाना है। बगदाद शरीफमें, जो पाक जमीन है और जहाँ कई पीर हो चुके हैं, बिना इजाजतके कौन जा सकता है? वहाँ अंग्रेज, सिख या उनके भाई-बन्धु कोई नहीं रह सकता।

अरब हमसे कहीं ज्यादा बढ़-चढ़े हैं। "यह हमारा देश है, इसपर कोई अँगुली उठाये तो हम उसकी अँगुली काट डालेंगे, तीसरेको यहाँ रहने न देंगे।"——यह जोश जिनमें हैं वे ही वास्तवमें सुखी हैं। यदि हम मानते हों कि अरब जंगली हैं और हम सभ्य हैं, तो हम उनके और खुद अपने साथ बेइन्साफी करते हैं। हमें गुलाम होनेपर

१८-२२
  1. एक विधवा महिला जो बादमें साबरमती आश्रममें रहने लगीं। उन्होंने गांधीजीके अनुरोधपर बीजापुरमें चरखेकी खोज की थी।