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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी थोड़े-बहुत सुख और भोग मिलते हैं। जबतक इस तरहके भोग-विलासकी इच्छा हम रखते हैं तबतक हम अरबोंसे घटिया ही हैं।

हमारे बाप-दादा कह गये हैं, वेदों और उपनिषदोंमें कहा गया है कि पवित्र भूमिको अपवित्र न होने दो। दूसरे लोग तुम्हारी धरतीपर पैर रखें तो मेहमान बनकर ही रख सकते हैं। जिसने आजादीको खो दिया, उसने सब-कुछ खो दिया; अपना धर्म भी खो दिया।

मैं यह नहीं मानता कि अंग्रेजी राज्यमें हम अपना धर्म शान्तिसे पाल सकते हैं और मुसलमानी राज्यमें नहीं पाल सकते थे।मैं जानता हूँ कि मुसलमानी राज्य पीड़क था; उसमें घमण्ड था। आजका अंग्रेजी राज्य तो नास्तिक है, धर्मसे विमुख है। इस राज्यमें हमारा धर्म जोखिममें पड़ गया है।

हमारे आसपासके मुल्कोंमें पठानों, ईरानियों और अरबोंकी हालत हमसे अच्छी है। हमारी-जैसी शिक्षा उन्हें नहीं मिलती, फिर भी वे हमसे बढ़कर हैं।

इस तरह अपनी दीन दशाका चित्र खींचनेके बाद मैं शिक्षकोंके सामने अपना मामला पेश करता हूँ। जबतक हम अपनी शिक्षाको कुरबान करनेके लिए तैयार न होंगे, तबतक हम देशको स्वतंत्र नहीं कर सकेंगे।

आजकल बहुतसे विद्यार्थी मेरे पास आकर अपनी बात इस ढंगसे कहते हैं कि दिलटटुकड़े-टुकड़े हो जाता है। फिर भी मैं देखता हूँ कि वे घबराये हुए हैं। वे ऐसे सवाल करते हैं कि आज हम स्कूल छोड़ दें तो कल ही दूसरा स्कूल मिलेगा या नहीं। यह शिक्षाका मोह है। यह कोई नहीं कह सकता कि मैं शिक्षाका विरोधी हूँ। मैं पलभर भी पढ़े या विचार किये बगैर नहीं रहता। लेकिन जब चारों तरफ आग लगी हो तो हम डिकन्स[१]या 'बाइबिल' लेकर पढ़ने नहीं बैठ सकते। इस वक्त देशमें दावानल सुलगा हुआ है। इस समय शिक्षाका मोह हमें हरगिज न रखना चाहिए।

अगर आप निश्चित रूपसे यह मानते हों कि अंग्रेजोंने पंजाब और खिलाफतके मामलेमें हिन्दुस्तानपर जुल्म किया है, उसे दगा दी है, तो जबतक इस जुल्मका वे पूरा प्रायश्चित्त न करें, अपना मैला दिल पूरी तरह साफ न कर लें तबतक उनसे किसी तरहका दान, वेतन या शिक्षा लेना बड़ा भारी पाप है। हम राक्षससे शिक्षा नहीं ले सकते। मैले हाथोंसे दिया जानेवाला शुद्धसे-शुद्ध शिक्षण भी मैला ही है। अंग्रेज तो अपनी गंदगीको भी सफाई कहकर बताते हैं।

इस वक्त हममें जो दीनता है, पामरता है और हम जिस भ्रममें पड़े हुए हैं, वह अंग्रेजी शिक्षाका ही प्रताप है। यह कहना सरासर झूठ है कि हमें अंग्रेजी शिक्षा न मिली होती तो हम इस वक्त कोई हलचल न करते होते।

देशके लिए मर मिटनेकी जो वृत्ति अरबोंमें है, वह हममें नहीं है। मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि जबतक हम ऐसी गिरी हुई हालतसे बाहर नहीं निकलेंगे, तबतक हिन्दुस्तान आजाद नहीं हो सकेगा।

  1. चार्ल्स डिकन्स (१८१२-१८७०); १९ वीं शताब्दीके सर्वाधिक लोकप्रिय अंग्रेज उपन्यासकार।