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दृढ़ता और वीरताकी आवश्यकता


शिक्षकों और प्रोफेसरोंसे मैं हिम्मतके साथ कहता हूँ कि प्रजामें उमंग और उत्साह भरना हो, तो आप कल ही इस्तीफा दे दें। इस्तीफा देनेवाला शिक्षक विद्यार्थियोंको बड़ेसे-बड़ा सबक सिखायेगा।

अगर शिक्षकोंमें वीरता या बहादुरी आ जाये, उनकी समझमें आ जाये कि जो सल्तनत इन्साफ नहीं करती और अपने, अन्यायका प्रायश्चित्त नहीं करती, उससे वेतन नहीं लिया जा सकता, तो गुजरातमें आज ही स्वराज्य हो जाये। शिक्षक अगर हिम्मत करके कहें कि हम भीख माँगकर भी सच्ची राष्ट्रीय शिक्षा ही देंगे, तो आकाशमें देवता भी देखने आयेंगे और रुपयोंकी वर्षा करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३-१०-१९२०

 

१७८. दृढ़ता और वीरताकी आवश्यकता

आज जो युद्ध चल रहा है, बहुत कम लोग उसके महत्त्वको जानते होंगे। एक सज्जनने मुझसे पूछा है कि "हम जो कार्य कर रहे हैं क्या उसे युद्धकी संज्ञा दी जा सकती है?" मैंने तो तुरन्त उत्तर दिया, "हमारी लड़ाईमें युद्धके सब लक्षण विद्यमान हैं।" हमें जो चीज चाहिए, अर्थात् स्वराज्य, वह युद्धके बिना कदापि नहीं मिल सकती; इसलिए साधन भी युद्धके होने चाहिए अर्थात् हमें सामान्य व्यवहारको बन्द करके आपद्-धर्मका आचरण करना चाहिए। युद्धमें और इसमें सिर्फ इतना अथवा भारी भेद यही है कि हमारे युद्धमें पशुबलको, शस्त्रबलको अवकाश नहीं है। इतना ही नहीं बल्कि शरीर-बलका उपयोग करना हमारी हार है। इस युद्धमें अन्य लक्षण सामान्य युद्धके समान ही हैं। इसमें सामान्य युद्धके समान ही आत्मत्याग, प्रशिक्षण और योजना आदिकी आवश्यकता है। सामान्य युद्धके समय अधिकांशतया जनता अपनी चालू प्रवृत्तियोंको त्याग देती है। वह सार्वजनिक संकटके समय अपने व्यक्तिगत दुःखोंको बिसरा देती है। अनीतिपर चलनेवाला नीतिका मार्ग ग्रहण करता है, लुटेरा लूटनेका धन्धा छोड़ देता है, व्यभिचारी व्यभिचारको त्याग देता है और चोर चोरी करना बन्द कर देता है। सब लोग देशको स्वतन्त्रताका जाप करते हैं। ऐसे समय लोगोंके पास अदालतोंमें जानेका समय नहीं होता; विद्यार्थी देशकी स्वतन्त्रता-प्राप्तिमें भाग लेते हैं और उसीको विद्याभ्यास मानते हैं।

लेकिन ऐसे समय सबसे शोभनीय गुण तो दृढ़ता और वीरता होते हैं। इनकी सबसे अधिक जरूरत दिखाई देती है। एक बार निश्चय कर लेनेपर, उससे न हटना यह हुई दृढ़ता। आज सरकारी स्कूलको छोड़ना फिर कल उसपर पश्चात्ताप करना और तीसरे दिन पुनः उसी स्कूलमें दाखिल होनेके लिये प्रयत्न करना दृढ़ता नहीं है। ऐसी दुर्बलता के कारण देशका पतन होता है, वह कभी उन्नत नहीं हो सकता। आज अगर एक अध्यापक त्यागपत्र देता है और कल उसे वापस ले लेता है तो वह