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सत्य और खिलाफत

कि हम थोड़ेही अरसेमें स्वराज्यका उपभोग करने लगेंगे। फिर भी जनता निस्सन्देह शिक्षित-वर्गसे इस बातकी अपेक्षा करती है कि वह यह कदम उठानेम दृढ़ता और वीरताका परिचय देगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३-१०-१९२०
 

१७९. सत्य और खिलाफत

सभी धर्मोकी चरम परिणति सत्यमें होती है। सत्य ही परमेश्वर है। सत्यसे परे कोई धर्म नहीं है। इसमें सन्देह नहीं कि सत्यका पालन करना अत्यन्त कठिन है। मनसा-वाचा सत्यका पालन करनवाले व्यक्तिको अन्य किसी वस्तुकी आवश्यकता ही नहीं होती। उससे उसे सब-कुछ मिलता रहता है। सत्यका मार्ग शूरोंके लिए ही है। सत्य सरल शब्द है; उसपर आचरण न कर सकनेपर मनुष्य अपनी कुलीनता खो बैठता है, उसकी साख चली जाती है। जैसे दूधमें कचरा पड़ जानेपर सारा दूध दूषित हो जाता है उसी तरह अन्यथा निर्दोष वचनोंमें असत्यका मिश्रण हो जानेसे वे निर्दोष वचन अपना महत्त्व खो देते हैं। इसलिए बुरे वचनोंके लिए ही सजा भोगनी पड़ती हो, सो बात नहीं, बल्कि निर्दोष वचन भी दूषित वचनोंसे मिलकर दूषित कहलाते हैं।

मौलाना जफर अली खाँका मामला इसका स्पष्ट उदाहरण है। उनपर जिन वचनोंको कहनेका अभियोग लगाया है वे उन्होंने कहे हैं या नहीं, सो हमें नहीं मालूम। मेरा उद्देश्य तो सिर्फ इतना ही बतलाना है कि उनपर अभियोग लगाने में चतुराईसे काम लिया गया है। जिन बातोंका मामलेके साथ कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, उनका होना कदाचित् मामला साबित भी नहीं कर सकता, वैसी बातोंका समावेश करके मौलाना जफर अली खाँके विरुद्ध जोरदार मामला बनाया गया है।

इस सारे अभियोगका कानूनकी दृष्टिसे कुछ भी अर्थ क्यों न हो, मेरा सम्बन्ध तो केवल इसके राजनीतिक फलितार्थोसे ही है।

इस अभियोग पत्रके दो भाग हैं। इनमेंसे पहले भागमें लगाया गया गम्भीर आरोप यदि सच है तो भी उससे मुख्य अभियोग सिद्ध नहीं होता और अगर दूसरे भागसे, जिसमें दरअसल कोई अपराधपूर्ण आरोप नहीं लगाया गया है, दोष सिद्ध होता है तो यह अभियुक्तके लिये प्रतिष्ठाकी बात है। मौलाना जफर अली खाँपर अभियोग है कि उन्होंने अपने भाषणमें यह कहा, "यदि सरकार चाहती है कि जनता युवराजके आगमनपर उनका स्वागत करे तो सरकारको कुछ शर्तें पूरी करनी ही चाहिए, जैसे टर्की साम्राज्यको बनाये रखना, मुसलमानोंको सन्तुष्ट करना, रौलट अधिनियम रद करना तथा यह वचन देना कि वह अब फिरसे मार्शल लॉ लागू नहीं करेगी। यदि सरकार यह सब नहीं करेगी तो [ब्रिटिश] साम्राज्यका नाश हो जायेगा।" यह कथन जोरदार है, लेकिन बिलकुल निर्दोष है। यदि ऐसा कहना-करना अपराध है तो ऐसा अपराध