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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं लगभग हमेशा करता हूँ। यह बात सच्ची है और सच बात कहनेमें कोई अपराध नहीं होता।

लेकिन सरकारका कहना है कि ऐसे कथनसे जनताके दिलमें उसके प्रति प्रेमभाव कम होता है। उसका यह कहना सच भी है। लेकिन अगर सरकार कोई अपकार्य करे और उसका वर्णन करनेसे उसके प्रति प्रेममें कमी आती हो तो इसमें दोष सरकारका है, बुरे कार्यका सच्चा विवरण पेश करनेवाले का नहीं। और यदि सच्चा विवरण पेश करना कानूनी अपराध है तो ऐसा अपराध पुण्यकर्म हो जाता है।

अभियोग पत्रके दूसरे भागमें कहा गया है कि अपने इसी भाषणमें मौलाना जफर अली खाँने मुसलमानोंको लक्ष्य करके कहा कि अंग्रेजोंने ही मक्का शरीफपर गोलाबारी की। एक मुसलमानने अपने पुत्रके चेहरेको, जो सरकारी पक्षकी ओरसे अरबोंके साथ युद्ध करता हुआ मारा गया था, सूअर-जैसा [विकृत] होते हुए देखा और बगदादमें ब्रिटिश लश्करने कुमारी कन्याओंकी इज्जत लूटी। अब इन बातोंमें से पहले और अन्तिम कथनोंका कोई प्रमाण नहीं है और दूसरा कथन असम्भव है। फिर भी ये जनताकी अन्धविश्वासपूर्ण भावनाओंको भड़कानेवाले हैं। मुझे तो अब भी यह उम्मीद है कि मौलाना जफर अलीने ऐसी बातें नहीं कही होंगी और यदि कही हैं, तो यह खेदजनक है। अतिरंजनासे हमारे कार्यको धक्का पहुँचता है। इस लेखका उद्देश्य यह बताना है कि कार्यकर्त्ताओंको ऐसे अतिरंजित भाषणोंसे बचनेकी बड़ी आवश्यकता है। सरकारकी ओरसे मिलनेवाले प्रमाणोंसे ही साम्राज्य के विरुद्ध मामला सिद्ध हो जाता है। अतिशयोक्तिसे मामला क्षीण होता है।

सम्भव है कि मौलाना जफर अलीपर यदि अतिशयोक्तिका आरोप न लगाया जाता तो उनके अन्य वचनोंको लेकर कोई अभियोग न चलाया जाता अथवा चलाना मुश्किल होता।

इससे प्रत्येक खिलाफत और सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको यह सार ग्रहण करना चाहिए कि उन्हें कदापि सत्यके मार्गसे नहीं हटना है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३-१०-१९२०

 

१८०. स्त्रियोंका असहयोग

"हम असहयोगमें क्या मदद कर सकते हैं?" शान्तिनिकेतनमें रहनेवाली बहनोंने अत्यन्त गम्भीरतासे उपर्युक्त प्रश्न किया था। यही सवाल एक भाईने भी बहनोंकी ओरसे किया है। शान्तिनिकेतनकी बहनोंको मैंने जो उत्तर दिया मैं उसीके अभिप्रायको थोड़े से परिवर्तनके साथ यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ। जबतक इस कार्यमें स्त्रियाँ पूरी तरहसे सहयोग नहीं करतीं तबतक स्वराज्यकी आशा रखना व्यर्थ है। स्त्रियाँ जितनी सूक्ष्मतासे ऐसी बातोंका पालन करती हैं उतनी सूक्ष्मतासे पुरुष नहीं करते। यदि स्त्रियाँ इस बातको नहीं समझतीं अथवा स्वीकार नहीं करतीं कि राष्ट्रकी स्वतन्त्रता-