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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
घूमने लगे। वे खुद भी अपनी छड़ीसे कोंच-कोंचकर औरतोंको बाहर निकाल रहे थे। उन्होंने हम सबको गाँवके दायरेके निकट लाकर खड़ा करवाया। औरतोंने उनके सामने हाथ जोड़ लिये। उन्होंने कुछ औरतोंको छड़ीसे पीटा, उनपर थूका और गन्दीसे-गन्दी गालियाँ दीं जो जबानपर नहीं लाई जा सकतीं। उन्होंने मुझे दो बार छड़ी मारी और मेरे मुँहपर थूका। उन्होंने जबरन सभी औरतोंके चेहरे बेपर्दा कर दिये, अपनी छड़ीसे उनके बुरके हटा दिये।
उन्होंने हमें "गधी, कुतिया, मक्खी, सूअर" इत्यादि कहा और बोले, "तुम अपने खाविन्दोंके साथ एक ही बिस्तरपर लेटी थीं, फिर तुमने उनको शरारतके लिए जानेसे क्यों नहीं रोका? अब पुलिसके सिपाही तुम्हारे सुत्थनोंकी जाँच करेंगे।" उन्होंने मुझे एक लात भी मारी, और हमसे मुर्गी बननेको कहा।
हमारे साथ यह दुर्व्यवहार, जब हमारे मर्द बँगलेपर थे, उस समय उनकी अनुपस्थितिमें किया गया।

अगर ऊपर बताये गये तथ्य सही हों तो इससे अधिक क्रूरतापूर्ण और घृणास्पद व्यवहार और क्या होगा? और इतनेपर भी जिस व्यक्तिने यह अपराध किया है, उसे शायद सरकारी खजानेसे पेंशन मिलेगी। जिज्ञासु पाठकोंको, जो बयान इकट्ठे किये गये हैं, उनमें सम्बन्धित अधिकारियोंके दुराचारके प्रमाणस्वरूप बहुत सामग्री मिल जायेगी। ये बयान पहले श्री एन्ड्र्यूज द्वारा इकट्ठे किये गये थे। बैरिस्टर श्री लाभसिंह, एम॰ ए॰, को मनियाँवालाकी स्त्रियोंसे मिलकर इन बयानोंकी पुष्टि करनेके लिए खासतौरपर नियुक्त किया गया। उन्होंने एक प्रकारसे सार्वजनिक जाँच की ही व्यवस्था कर डाली, जिसमें कोई भी व्यक्ति शरीक हो सकता था।

जब श्री मॉण्टेग्युका ध्यान इन बयानोंकी ओर आकृष्ट किया गया तो उन्होंने बड़ी फुर्तीसे श्रीमती सरोजिनी नायडूको उनकी तथाकथित गैरजिम्मेदाराना बातके लिए फटकार बता दी, और इसी कारण श्री मॉण्टेग्युने ज्ञानमें आकर जाँचका आदेश दे डाला। लेकिन लगता है, वाइसराय महोदयने चुपचाप उनके आदेशोंको अनसुना कर दिया है और कोई जाँच नहीं करवाई है। उन्होंने गवाहीका एक नया ही सिद्धान्त स्थापित किया है, जिसके बारेमें आजतक कभी कुछ नहीं सुना गया, और इसी सिद्धान्तके आधारपर उन्होंने यह नियम ही बना दिया है कि वेश्याओंकी गवाहीका विश्वास नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दोंमें, वाइसरायके कथनसे जो स्वाभाविक निष्कर्ष निकाला जा सकता है वह यही कि जबतक वेश्याओंके दावोंका समर्थन किसी औरकी गवाहीके द्वारा नहीं किया जाता तबतक उन्हें न्याय नहीं मिल सकता। जो भी हो, स्पष्ट ही श्री मॉण्टेग्युने वाइसरायका स्पष्टीकरण स्वीकार कर लिया है और इस तरह असहयोगको बल प्रदान किया है। क्या भारत क्षण-भरको भी किसी ऐसी सरकारके साथ सहयोग कर सकता है जो अपने अधिकारियों द्वारा भारतीय जनताके प्रति किये गये ऐसे बर्बर व्यवहारको भी क्षमा कर दे?

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ६-१०-१९२०