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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/३७७

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१८३. हिन्दू-मुस्लिम एकता

इसमें सन्देह नहीं कि असहयोगकी सफलता जितनी अहिंसापर निर्भर करती है। उतनी ही हिन्दू-मुस्लिम एकतापर। इस संघर्षमें इन दोनोंकी बड़ी कड़ी कसौटी होगी और अगर वह उसमें टिकी रही तो विजय निश्चित है।

आगरामें उसकी कठिन परीक्षा हुई और कहा जाता है कि जब दोनों दल न्यायके लिए अधिकारियोंके पास गये तो उन्होंने उनसे शौकत अली और मेरे पास जानेको कहा। सौभाग्यसे उन्हें पास ही में इस कामके लिए हम दोनोंसे भी ज्यादा उपयुक्त आदमी मिल गया। हकीम अजमलखाँ धार्मिक मुसलमान हैं और उनपर दोनों ही पक्षोंका विश्वास है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों ही उनका आदर करते हैं। वे अपने सहायक कार्यकर्त्ताओंके साथ शीघ्र ही आगरा पहुँचे। उन्होंने झगड़ा निपटा दिया और दोनों पक्षोंमें फिर पहले से भी प्रगाढ़ मैत्री हो गई। ऐसी ही घटना दिल्लीके पास भी हो गई थी; वहाँ भी हकीमजीका सत्प्रभाव काम आया और वह घटना जो बढ़कर भयंकर उत्पातका कारण हो सकती थी, वहीं शान्त हो गई।

लेकिन हकीम अजमलखाँ साहब शान्तिके देवदूतकी तरह ठीक समयपर हर जगह तो नहीं पहुँच सकते। न शौकत अली या मैं ही। और इस बातकी जरूरत तो है कि इन दोनोंमें फूट डालनेकी जो भी कोशिशें की जायें, उनके बावजूद उनके बीच पूरी शान्ति रहे।

सवाल यह है कि आगरामें अधिकारियोंसे सहायताकी प्रार्थना की ही क्यों गई? अगर हम लोग असहयोगको तनिक भी सफल बनाना चाहते हैं तो जब हम आपसमें लड़ते हैं उस समय हमें इस बातकी जरूरत नहीं होनी चाहिए कि हम सरकारसे रक्षा करनेके लिए कहें। यदि हम अपने झगड़ोंके निपटारेके लिए या अपराधियोंको दण्डित करनेके लिए अन्तमें ब्रिटिश सरकारपर ही भरोसा रखते हैं तो असहयोगकी यह सारी योजना ही विफल हो जायेगी। हरएक गाँवमें, छोटेसे-छोटे गाँवमें भी, कमसे-कम एक हिन्दू और एक मुसलमान ऐसा अवश्य होना चाहिए जिनका मुख्य कार्य हिन्दू-मुसलमानोंमें झगड़े न होने देना हो। लेकिन कभी-कभी तो सगे भाइयोंमें भी मारपीटकी नौबत आ जाती है। आरम्भिक अवस्थामें, जहाँ-तहाँ हम भी ऐसा ही करेंगे। दुर्भाग्यवश, सार्वजनिक सेवाका कार्य करनेवाले हम लोगोंने अपनी जनताके मानसको समझने और उसपर अभीष्ट प्रभाव डालनेका बहुत कम प्रयत्न किया है। और उनमें भी जो ज्यादा झगड़ालू किस्मके हैं, उनपर तो ध्यान ही नहीं दिया है। जबतक हम लोग जनताका आदर नहीं प्राप्त कर लेते और जबतक उद्दण्डोंको अपने वशमें नहीं कर लेते तबतक इस तरहकी बदमिजाजीकी घटनाएँ कभी-कभी अवश्य हुआ करेंगी। पर ऐसी घटनाओंके हो जानेपर हमें सरकारका मुँह ताकना छोड़ देना चाहिए। हकीमजीने हमें प्रत्यक्ष दिखला दिया कि यह कैसे किया जा सकता है।